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वाल्मीकि रामायण को सूक्तियां
१. क्षमा ही स्त्रियो तथा पुरुषो का मूषण है ।
२. क्षमा ही यश है, क्षमा ही धर्म है, क्षमा से ही चराचर जगत् स्थित है।
३. हे ब्रह्मन् । क्षात्रवल से ब्रह्मवल अधिक दिव्य एव बलवान होता है।
४ (दशरथ कैकेयी से कहते हैं)-सत्य, दान, शीलता, तप, त्याग, मित्रता
पवित्रता, सरलता, नम्रता, विद्या और गुरुजनो की सेवा-ये सब गुण
राम में ध्र व रूप से विद्यमान हैं । ५. (रानी कौशल्या के सम्बन्ध में दशरथ की उक्ति) जब भी काम पडता है,
कौशल्पा दासी के समान, मित्र के समान, भार्या और बहन के समान, तथा माता के समान हर प्रकार की सेवा शुश्रूषा करने के लिए सदा उपस्थित रहती है।