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उपनिषद् साहित्य को सूक्तियां
१. इस गतिमान ससार मे जो कुछ भी है, वह सव परब्रह्म से अथवा
स्वामित्व भाव से परिवेष्टित है। इसलिए अपने स्वामित्व भाव का • परित्याग कर प्राप्त साधनो का उपभोग करो, और जो स्वत्व किसी
दूसरे का है, उसके प्रति मत ललचाओ।
२. निष्काम कर्म करते हुए ही इस संसार में सौ वर्ष जीवित रहने की
कामना रखनी चाहिए। इस प्रकार निष्कामकर्मा मनुष्य को कर्म का लेप नही होता । इससे भिन्न अन्य कोई कर्म का माग नहीं है।
३. जो मनुष्य आत्मा का हनन करते हैं, त्यागपूर्वक भोग नही करते हैं, वे
गहरे अन्धकार से प्रावृत असुर्य-लोक मे जाते हैं।
* अङ्क केवल मंत्रसंख्या के सूचक हैं ।