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उपनिषद् साहित्य को सूक्तियां
दो सौ तेरह ८८ कम के सकल्प से लोक, और लोक के सकल्प से सब कुछ चल रहा है।
८६ बल विज्ञान से बडा है । एक बलवान् सो विज्ञानवानो अर्थात् विद्वानो
को कपा देता है । विज्ञानवान् जब बलवान होता है, तभी कुछ करने को उठता है, तैयार होता है।
६० बल से ही समग्र लोक की स्थिति है, अत बल की उपासना करो
६१. स्मृति आकाश से वडो है । (यही कारण है कि आकाश में तो शब्द
आता है और चला जाता है, किन्तु स्मृति मे तो शब्द स्थिर होकर बैठ
जाता है।) ६२. जिसे ज्ञान नहीं होता, वह सत्य नहीं बोल सकता । जिसे ज्ञान होता है,
वही सत्य बोलता है।
६३ जो मनन नहीं करता, वह कुछ भी समझ नहीं पाता । मनन करने से गूढ
से गूढ रहस्य भी समझ मे आ जाता है। ६४. विना श्रद्धा के मनन नही होता।
६५ निष्ठा उसो को प्राप्त होती है, जो कर्मण्य होता है । विना कर्मण्यता के
निष्ठा नहीं होती।
६६. जो 'भूमा' -असीम है, महान् है, वही सुख है । और जो 'अल्प'-ससीम
है, क्षुद्र है, उममे सुख नही है । ६७ जो भूमा है, वह अमृत है, अविनाशी है । और जो अल्प है, वह मत्यं है,
अर्थात् मरणधर्मा है. विनाशी है । जो आत्मा के भूमा-विराट रूप को देख लेता है, वह फिर कभी मृत्यु को नही देखता, रोग को नही देवता, और न अन्य किसी दु ख को देखता है, - अर्थात् आत्भद्रष्टा मृत्यु, रोग एव दुःख से मुक्त हो जाता है ।