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ब्राह्मण साहित्य को सूक्तियो
एक सौ उनहत्तर १२८. सोया पहा रहने वाला (बालसी, निस्क्रिय) कलियुग है, निद्रा त्याग
कर जग जाने वाला (बालस्य त्यागकर कर्तव्य का सकल्प करने वाला) द्वापर है, उठ कर सटा होने वाला (कतंत्र्य के लिए तैयार हो जाने वाला) प्रेता है, और कर्तव्य के संघपंपथ पर चल पड़ने वाला कृत युग है।
चले चलो....चले चलो ! १२६. चलने वाला ही मधु और सुम्वादु उदुम्बर अर्थात् सर्वोत्तम ऐश्वर्य
प्राप्त करता है । सूर्य की महिमा को देसिए कि वह चलता हुमा कभी थकता नही है।
चले चलो....चले चलो। १३०. जहां क्षत्रिय ब्राह्मण के नेतृत्व में रहता है, अर्थात् कर्म ज्ञान के प्रकाश
मे चलता है, वह राष्ट्र समृद्धि की ओर बढता रहता है । १३१. जो 'देता हूँ'-यह कहता है, वह एक प्रकार से वाणी की विजय है ।
१३२. जो राजा विरोधी शत्रुमओ से रहित है, वही समृद्धि प्राप्त कर
सकता है। १३३. राजा के लिए राष्ट्र ही वास्तविक धन है ।
१३४. सदाचारी विद्वान् ब्राह्मण ही राष्ट्र का संरक्षक होता है ।
४. कदाचिदपि अलसो न भवति । ५ एतदेव वाक्सम्बन्धि जित जयः ।.... पूजार्थो जितामिति दीर्घ ।