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प्रारण्यक साहित्य की सूक्तियां
१. संसार में अग्नितत्व (तेजस्) ही महान् है ।
२. जो विद्वानो को निन्दा करता है, वह पापी होता है ।
३. हे भगवन् । जो तू है, वही मैं हूँ।
४. सुख दुःख किस से होते है ? शरीर से होते है।
५. श्रेष्ठ जन विना मांगे सहयोग देते हैं।
६. मत उरो, मत व्यथित हो ।
७. सत्य ही इन्द्र है।
*अङ्क क्रमशः अध्याय, तथा कण्डिका के सूचक हैं।