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ब्राह्मण साहित्य की सूक्तियां
एक सौ इकसठ
८८. जो धर्म की रक्षा करता है,धर्म उसकी रक्षा करता है ।
८६. पवित्र क्या है ? ब्रह्मचर्य है।
दर्शनीय क्या है ? ब्रह्मचर्य है ।
६० अडियल नहकारी को बहुत भय (खतरो) का सामना करना पड़ता है।
६१. विद्वान् अपने मे ही होम करते हैं, दूसरे (अग्नि आदि) में नही ।
६२. छिद्रसहित अर्थात् दूपित यज्ञ (कर्म) फूटे हुए जलाशय के समान वह
जाता है। ६३. यजमान (नेता) के ओधेमुंह गिरने पर देश भी ओमुह गिर
जाता है। ६४. अनभिज्ञ व्यक्ति यदि किसी कम मे प्रवृत्त होता है तो वह केवल क्लेश
ही प्राप्त करता है। ६५. देवता (सज्जन पुरुप) नमस्कार का तिरस्कार नही करते, वे नमस्कार
अर्थात् अपनी उपासना करनेवाले को अवश्य ही सब प्रकार से संपन्न
करते हैं। ६६. सत्य ब्रह्म में प्रतिष्ठित है और ब्रह्म तप मे ।
६७. अमृत (अविनाशी चित् शक्ति) ही स्तुति या उपासना के योग्य है । अमृत
से ही मृत्यु को पार किया जाता है । ६८ वाणी शस्त्र भी है।
६६. मन ही ब्रह्मा है, अर्थात् कर्मसृष्टि का निर्माता है ।