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ब्राह्मण साहित्य को सूक्तिया
एक सौ उनसठ ७७. यदि पुत्र गलत राह पर चलता हो तो पिता का कर्तव्य है कि उसे सही
राह पर लाए। ७८, असत्य, वाणी का छिद्र है ।
___७६. ब्रह्म क्षय ने पहले है, अर्थात् कर्म से पूर्व ज्ञान का होना आवश्यक है ।
८०. जो निपिद्ध कर्म का आचरण करते हैं, वे हीन से और अधिक हीन होते
जाते हैं। ८१. वाणी कामधेनु है ।
८२. सत्पुरुष अपने जीवन के प्रत्येक दिन को विविध सत्कमों से सफल बनाते
रहते हैं। ८३ वीतराग मनु ने जो कुछ कहा है, वह एक हितकारी औषध के तुल्य है ।
८४. देवता (विद्वान लोग) परोक्ष से प्रेम करते हैं और प्रत्यक्ष से द्वेष रखते
हैं। अर्थात् क्षणभंगुर वर्तमान को छोडकर भविष्य की उन्नति के लिए
प्रयत्नशील रहते हैं। ८५. मैं अपने मन से जैसा भी विचारूंगा, वैसा ही होगा।
___९६. श्रेष्ठ ज्ञान तप के द्वारा ही प्रकट होता है ।
८७. यजमान (साधक) राग से पतित हो जाते हैं और उनकी श्रृति (शास्त्र
ज्ञान) भी नष्ट हो जाती है ।
५० क्षेमकरणदास त्रिवेदी द्वारा प्रयाग (ई० १६२४) मे मुद्रित । " -अक क्रमशः भाग, प्रपाठक तथा कण्डिका के सूचक हैं।