________________
पिच्यानवे
यजुर्वेद की सूक्तियाँ १००. सभासद् धर्म के लिए चुना जाता है ।
१०१. अन्धा (विवेकहीन) केवल स्वप्न देखने के लिए है, और बहरा (हित
शिक्षा न सुनने वाला) केवल अधर्म के लिए है। १०२. प्रश्नो का विवेचन करने वाला विचारक मर्यादा के लिए नियुक्त
होना चाहिए। १०३ पिशुन वैर तथा हत्या के लिए है ।
१०६.
१०४. प्राप्त संपत्ति का उचित भाग साथियो को देने वाला स्वर्ग का अधि
कारी होता है। १०५. सदा जाग्रत रहने वाले को मूति (ऐश्वर्य प्राप्त होती है और सदा सोते
रहने वाले को अभूति (दरिद्रता) प्राप्त होती है । विराट् पुरुष के हजारो शिर है, हजारो नेत्र हैं, हजारो चरण हैं, अर्थात वह प्राणिमात्र के साथ तदाकार होकर रहता है । वह विश्वात्मा समग्न विश्व को अर्थात प्राणिमात्र को स्पर्श करता हुआ दस अगुल
(पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और पांच कर्मेन्द्रियां) को अतिक्रमण किए हुए है । १०७. मै उस सर्वतोमहान्, अन्धकार से रहित, स्वप्रकाशस्वरूप पुरुष
(शुद्ध चैतन्य आत्मा) को जानता हूँ। उसको जान लेने पर ही मृत्यु को जोता जाता है । मृत्यु से पार होने के लिए इस (आत्मदर्शन) के सिवा
अन्य कोई मार्ग नही है। १०८. हे आदित्यस्वरूप पुरुष | श्री और लक्ष्मी तेरी पत्नी है ।
शब्देनाविद्योच्यते---महीधर । ७. यया सवंजनाश्रयणीयो भवति सा श्री, श्रियतेऽनया श्री. सम्पदित्यर्थ । यया लक्ष्यते दृश्यते जन सा लक्ष्मी सौन्दर्यमित्यर्थ.-- महीघर. ८ पालयित्र्यौ-उबट ।