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एक सौ तेतालीस
अथर्ववेद की सूक्तिया १६५. काल ही समग्र विश्व का ईश्वर है ।
१६६. काल से ही समय पर सूर्य उदित होता है, और काल से ही अस्त हो
जाता है। १६७. काल मे ही समग्र लोक (प्राणी अथवा विश्व) प्रतिष्ठित है।
१६८ हे देव । मुझ को देवो मे प्रिय बनाइए और राजाओ मे प्रिय
बनाइए । मुझे जो भी देखें, मैं उन सब का प्रिय रहूँ, शूद्रो और आर्यों
मे भी मैं प्रिय रहूँ। १६६ हम मौ वर्ष तक सभी कार्यों का यथोचित रूप से ज्ञान करते रहे,
समस्याओ का समाधान पाते रहें, हम मो वर्ष तक उत्तरोत्तर अभिवृद्धि
को प्राप्त होते रहे। १७०. पूर्ण आयु तक माप और हम सब परोपकार करते हुए सुन्दर जीवन
यापन करें। १७१. इन्द्र ने अपने स्तोताओ को, अनुयायी कार्यकर्ताओ को उद्बोधन किया
कि तुम खड़े हो जाओ और जनसमाज मे सत्कर्म करते हुए
विचरण करो। १७२. सोने वाला मरे हुए के समान है।
१७३. पुरुष वह है, जो जनजीवन मे व्याप्त हो जाता है।