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अथर्ववेद की सूक्तियां
१. हम सव श्रुत (ज्ञान) से युक्त हो, श्र त (ज्ञान) के साथ कभी हमारा
वियोग न हो।
२. जिह्वा से असत्य वचन बोलना बहुत बड़ा पाप है ।
३. नदिया मिल कर बहती हैं, वायु मिलकर बहते हैं, पक्षी भी मिलकर
उड़ते हैं, इसी प्रकार श्रेष्ठ जन भी कर्मक्षेत्र मे मिल जुल कर काम करते हैं। मैं संगठन की दृष्टि से ही यह स्नेहद्रवित अनुष्ठान कर
४. मेरा अन्दर का कवच ब्रह्म (-ज्ञान) है।
* अथर्ववेद संहिता, भट्टारक श्रीपाद दामोदर सातवलेकर द्वारा संपादित, औष से (वि० स० १६६६ मे) प्रकाशित । -अथर्ववेद संहिता सायणभाष्यसहित, पं० रामचन्द्र शर्मा द्वारा
सनातनधर्म यन्त्रालय मुरादाबाद से (वि० स० १९८६) मुद्रित । नोट-अथर्ववेदान्तर्गत समस्त टिप्पण सायणचार्यकृत भाष्य के हैं ।