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ऋग्वेद* की सूक्तियां
१
मैं अग्नि (अग्रणी तेजस्वी महापुरुष) की स्तुति करता हूँ, जो पुरोहित हैआगे बढकर सव का हित सम्पादन करता है, यज्ञ ( सत्कर्म) का देवता है, ऋत्विज है - यथावसर योग्य कर्म का अनुष्ठान करता है, होता है— सहयोगी साथियो का आह्वान करता है, प्रजा को रत्नो (श्र ेष्ठ वैभव ) का दान करता है ।
२ अग्नितत्त्व ( तेजस्तत्त्व ) की पुराने और नये सभी तत्वद्रष्टा ऋषियो ने प्रशसा की है ।
३ तेज से ही मनुष्य को ऐश्वयं मिलता है, और वह दिन-प्रतिदिन बढता जाता है, कभी क्षीण नही होता ।
४. देव देवो के साथ ही आता है । अर्थात् एक दिव्य सद्गुण अन्य अनेक सद्गुणो को साथ मे लाता है ।
* भट्टाचार्य श्रीपाद दामोदर सातवलेकर द्वारा सपादित औध से प्रकाशित ( वि० स० १९९६) सस्करण |
- ऋग्सहिता सायणभाष्यसहित, महामहोपाध्याय राजाराम शास्त्री द्वारा संपादित, गणपत कृष्णाजी प्रेस बम्बई से प्रकाशित (शक स० १८१० ) ।