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सात
सूक्ति कण १५. हे देवगण | मैं अपने से बड़े महान् पुरुषो का कभी आदर करना न
छोड़े। हमारे अदानशील विरोधी शत्रु सोए रहे और दानशील मित्र जागते रहे,
अर्थात् सहयोग देने मे सदा तत्पर रहे। १७ सब प्रकार के मात्सर्य का त्यागकर ।
१८. विभूति (लक्ष्मी) प्रिय एवं सत्यरूप अर्थात् समीचीन होनी चाहिए।
१६. ऊँचे उठकर अर्थात् समृद्ध होकर अपने आश्रितो के अन्नदाता बनो ।
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२०. हमे उन्नत करो, ताकि हम ससार मे सम्मान के साथ विचरण कर सकें,
जीवित रह सकें। हे वीर | तू एकाको होने पर भी समूची सेना के बराबर है, शत्रुओ को पराजित करने के लिए उनके विपुल ऐश्वयं पर अधिकार करने
वाला है। २२. तू क्षुद्र को महान् बनाने वाला है, अल्प को बहुत वढाने वाला है।
२३. हमे कल्याणकारी कर्म सब ओर से प्राप्त होते रहे ।
२४. दानादि सत्कर्म करने वाले देवताओ । हम कानो से सदा कल्याणकारी
मंगल वचन सुनते रहे, हम आँखो से सदा कल्याणकारी शोभन दृश्य ही
देखते रहे। २५. हमे दिव्य आत्माओ जैसी कल्याणकारी सद्बुद्धि प्राप्त हो ।
सनिता-दाता । ७ लोके चरणाय । ८ त्वमेकोऽपि सेनासहशो भवसि । ६. यजुर्वेद २०२१ सामवेद २१.१।९।२ ।