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यजुर्वेद को सूक्तियां
इक्यासी
४५. ऊँचे उठो । अर्थात् कर्तव्य के लिए खडे हो जाओ।
४६ हे दूर्वा । तुम प्रत्येक काण्ड और प्रत्येक पर्व से अंकुरित होती हो, इसी
प्रकार हम भी सैकड़ो हजारो अकुरो के समान सब और विस्तृत हो ।
४७ दुग्ध-दान मादि के द्वारा शोभायमान अदिति-(जो कभी भी मारने योग्य
नही है) गौ को मत मारो । ४८. वसन्त प्राणशक्ति का पुत्र है।
४६. मन विश्व कर्मा का पुत्र है (अत. वह सब कुछ करने में समर्थ है)।
५०. उत्तरदिशा मे अर्थात् उत्तम विचार दृष्टि मे स्वर्ग है ।
५१. यह बुद्धि अथवा वाणी ही सर्वोपरि है।
५२. यह वाणी ही विश्वकर्मा (सब कुछ करने वाला) ऋषि है ।
५३. सत्य के लिए ही सत्य को परिपुष्ट करो....धर्म के लिए ही धर्म को
परिपुष्ट करो । ५४. श्रुत (ज्ञान) के लिए ही श्रुत को परिपुष्ट करो।
५५. मनुष्य और जगम (गाय, भैस आदि) पशुओ की हिंसा न करो।
कतम्-महीधर । ३ धर्मणा धर्ममिति विभक्तिव्यत्यय । ४ जिन्वतिः तर्पणार्थ. -उव्वट ।