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नूक्ति कण
एक सौ इनातानीम
२६ जो लोक परलोक-दोनो लोको के स्वरूप को जानता है, वही मुनि
कहलाता है। ३० वस्तुत ज्ञान ही मौन है।
३१. जिसका राग द्वाप भग्न (नप्ट) हो गया है, वह भगवान है।
३२. जो लोधी नहीं है, किसी को पास नहीं देता है, अपनी बडाई नही
होकता है, चंचलतारहित है, विचारपूर्वक बोलता है, उद्धत नही है,वहीं वाचायत (वाकमयमी) मुनि है ।
३३. परिग्रह का मूल इच्छा है ।
३४ सभी बाल जीव प्रज्ञाहीन होते हैं ।
३५ सभी मतवादी अपनी अपनी दृष्टि को सत्य मानते है, इसलिए वे अपने
सिवाय दूसरो को अज्ञानी के रूप में देखते है ।
३६. न सत्य अनेक हैं, न नाना (एक दूसरे से पृथक्) हैं ।
३७. ब्राह्मण (ज्ञानी) परनेय नही होते--अर्थात् वे दूसरो के द्वारा नही चलाए
जाते, वे स्वय अपना पथ निश्चित करते हैं।
३८. संसार के नाम रूपो को भले ही कोई थोडा जाने या अधिक, ज्ञानियो ने
आत्मशुद्धि के लिए इसका कोई महत्व नही माना है ।
- ३६. संसार अविद्या से पैदा होता है ।
४० कोष मन का धुआं है ।