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न्यानांग को सूक्तिया
उनसठ
३६. जिसका अन्तर, हृदय निप्पाप और निर्मल है, साथ ही वाणी भी मधुर
है, वह मनुष्य मधु के घडे पर मधु के ढक्कन के समान है ।
३७. जिसका हृदय तो निष्पाप और निर्मल है, कितु वाणी से कटु एव कठोर
भापी है, वह मनुप्य मधु के घड़े पर विप के ढक्कन के समान है ।
२८. जिसका हृदय कलुपित और दभ युक्त है, कितु वाणी से मीठा बोलता है,
वह मनुष्य विप के घडे पर मधु के ढक्कन के समान है।
३६ जिसका हृदय भी कलुपित है और वाणी ने भी सदा कटु बोलता है, वह
पुरुप विप के घडे पर विप के ढक्कन के समान है।
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कुछ व्यक्ति ममुद्र तरने जैसा महान् सकल्प करते है, और समुद्र तैरने जैसा ही महान् कार्य भी करते है। कुछ व्यक्ति समुद्र तैरने जैसा महान् संकल्प करते हैं, किंतु गोप्पद (गाय के खुर जितना पानी) तैरने जैसा क्षुद्र कार्य ही कर पाते हैं । कुछ गोप्पद तैरने जैसा क्षुद्र सकल्प करके समुद्र तैरने जैसा महान् कार्य कर जाते हैं । कुछ गोप्पद तेरने जैमा क्षुद्र सकल्प करके गोष्पद तैरने जैसा
ही क्षुद्र कार्य कर पाते है। . ४१. भगवान ने सर्वत्र निष्कामता (अनिदानता) को श्रेष्ठ बताया है।
४२. छह तरह के वचन नही बोलने चाहिए
असत्य वचन, तिरस्कारयुक्त वचन, झिडकते हुए वचन, कठोर वचन, साधारण मनुष्यो की तरह अविचारपूर्ण वचन और शान्त हुए कलह को फिर से भडकाने वाले वचन ।
४३. वाचालता सत्य वचन का विघात करती है ।