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सुत्तपिटक : धम्मपद की सूक्तियां
१ सभी धर्म (वृत्तियां) पहले मन मे पैदा होते है, मन ही मुख्य है,
सब कुछ मनोमय है। यदि कोई व्यक्ति दूपित मन से कुछ बोलता है, करता है, तो दुख उसका अनुमरण उमी प्रकार करता है जिस प्रकार
कि पहिया (चक्र) गाडी खीचने वाले बैलो के पैरो का। २ सभी धर्म (वृत्तियां) पहले मन मे पैदा होते हैं, मन ही मुख्य है, सब कुछ
मनोमय है । यदि कोई निमल मनसे कुछ बोलता है या करता है तो सुख उसका अनुसरण उमी प्रकार करता है जिस प्रकार कि कभी साथ नही
छोड़ने वाली छाया मनुप्य का अनुसरण करती है। ३ वैर से वैर कभी शात नहीं होते। अवर (प्रेम) से ही वैर शात होते हैं
यही शाबत नियम है।
४. अच्छी तरह छाए हुए मकान मे वर्षा का पानी आसानी से प्रवेश नहीं कर
पाता, ठीक वैसे ही सुभावित (साधे हुए) चित्त मे राग का प्रवेश नही हो सकता।
५. पाप करने वाला लोक-परलोक दोनो जगह शोक करता है ।