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धम्मपद की सूक्तिया
सत्तावन ३७. मनुष्य का जन्म पाना कठिन है, मनुप्य का जीवित रहना कठिन है ।
सद्धर्म का अवण करना कठिन है, और बुद्धो (ज्ञानियो) का उत्पन्न
होना कठिन है। ३८ पापाचार का मवंथा नहीं करना, पुण्य का सचय करना, स्व-चित्त को
विशुद्ध करना-यही बुद्धो की शिक्षा है ।
३६. क्षमा (सहिष्णुता) परम तप है।
४०. स्वर्णमुद्राओ की वर्षा होने पर भी अतृप्न मनुप्य को विपयो से तृप्ति
नहीं होती।
४१ विजय मे वैर की परंपरा बढती है, पराजित व्यक्ति मन मे कुढता रहता
है । जो जय और पराजय को छोड देता है वही सुखी होता है ।
४२. राग से बढकर और कोई अग्नि नही है, द्वाप से बढकर और कोई पाप
नहीं है। ४३. शाति से बढकर सुख नही है ।
४४. भूख सबसे बडा रोग है।
४५ आरोग्य परम लाभ है, सतोप परम वन है। विश्वास परम वन्धु है और
निर्वाण परम सुख है।
४६ तृष्णा से शोक और भय होता है । जो तृष्णा से मुक्त हो गया उसे न
शोक होता है, न भय ।
४७ जो उत्पन्न क्रोध को, चलते रथ की तरह रोक लेता है, उमी को मैं
सारथि कहता हूँ। वाकी लोग तो सिर्फ लगाम पकडने वाले हैं।