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सुत्तनिपात की सूक्तिया
नवासी
३७. जो मनुष्य आलती ओर प्रमत्त है, न उसकी प्रज्ञा वढती है और न उस का श्रुत ( शास्त्र ज्ञान ) ही बढ पाता है ।
३८. जागो, बैठे हो जाओ, सोने से तुम्हे क्या लाभ है ? कुछ नही ।
३६. समय चुकने पर पछताना पडता है ।
४०. अप्रमाद और विद्या मे हो अन्तर का शल्य (काटा ) निकाला जा सकता है |
४१. क्या तुम अति परिचय के कारण कभी ज्ञानी पुरुष का अपमान तो नही करते ?
४२. बुद्ध के शिष्य यथावादी तथाकारी हैं ।
४३. भिक्षु क्रोध और कृपणता को छोड़ दे |
४४. जलते वोयले के कुण्ड के समान जान कर, साधक को, अब्रह्मचर्य का त्याग कर देना चाहिए ।
४५. हे मार । कामवासना तेरी पहली सेना है, अरति दूसरी, भूख प्यास तीसरी ओर तृष्णा तेरी चौथी सेना है ।
४६. संतो ने अच्छे वचन को ही उत्तम कहा है ।
४७ सत्य ही अमृत वाणी है, यह शाश्वत धर्म है ।
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जिस प्रकार सुन्दर पुण्डरीक कमल पानी मे लिप्त नही होता, उसी प्रकार पुण्य पाप- -दोनो मे आप भी लिप्त नही होते ।