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सुत्तपिटक : थेरगाथा की सूक्तियां
जो उपशात है, पापो से उपरत है, विचारपूर्वक बोलता है, अभिमानरहित है, वह उसी प्रकार पापधर्मों को उड़ा देता है जिस प्रकार हवा वृक्ष के सूखे पत्तो को ।
तत्वद्रष्टा एव ज्ञानी सत्पुरुषो की संगति करनी चाहिए ।
३ अपने आप को उसी प्रकार ठीक करो, जिस प्रकार वाण बनाने वाला वाण को ठीक करता है ।
४ ससार मे शील ही श्रेष्ठ है, प्रज्ञा ही उत्तम है । मनुष्यो और देवो मे शील एव प्रज्ञा से ही वास्तविक विजय होती है ।
५. सत्पुरुषो का दर्शन कल्याणकारी है । सत्पुरुषो के दर्शन से सशय का उच्छेद होता है और बुद्धि की वृद्धि होती है ।
६ जो काम भोगो की कामना करता है, वह दुःखो की कामना करता है ।
७. जो लाभ या अलाभ से विचलित हो जाते है, वे समाधि को प्राप्त नही कर सकते ।