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जातक को सूक्तिया
एक सौ ग्यारह १८. जो दान देकर पछताता नहीं है, यह अपने मे बड़ा ही दुष्कर कार्य है ।
१६. साधु सोता हुआ भी जागता है ।
२०. धर्म नष्ट होने पर व्यक्ति नष्ट हो जाता है।
२१. जो जानता हुआ भी पूछने पर अन्यथा (झूठ) वोलता है, उसको जीम
साप की तरह दो टुकडे हो जाती है ।
२२. साधारण कोटि के ब्रह्मचर्य (सयम) से कमप्रधान क्षत्रिय जाति मे जन्म
होता है, मध्यम से देवयोनि मे और उत्तम ब्रह्मचर्य से आत्मा विशुद्ध होता है।
२३. घास व काठ मे पड़ी हुई अग्नि को तरह जिसका क्रोध सहसा भडक
उठता है, उसका यश वैसे ही क्षीण होता जाता है जैसे कि कृष्ण पक्ष मे
चन्द्रमा। २४. काम (इच्छा) से बढकर कोई दु ख नहीं है ।
२५. प्रज्ञा से तृप्त पुरुष को तृष्णा अपने वश मे नही कर सकती।
__ २६ चाहे एरण्ड हो, नीम हो या पारिभद्र (करपवृक्ष) हो, मधु चाहने वाले
को जहा से भी मधु मिल जाए उसके लिए वही वृक्ष उत्तम है । इमी प्रकार क्षत्रिय ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र, चण्डाल,पुक्कुस आदि कोई भी हो, जिससे भी धर्म का स्वरूप जाना जा सके, जिज्ञासु के लिए वही मनुष्य उत्तम है।
२७ होन जाति वाला मनुष्य भी यदि उद्योगी है, धृतिमान है, आचार और - शील से सम्पन्न है तो वह रात्रि में अग्नि के समान प्रकाशमान होता है ।