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उदान की सूक्तिया
१६ शरीर से सयमहीन प्रवृत्ति करने वाला, मिथ्या सिद्धान्त को मानने वाला और निरुद्यमी आलसी व्यक्ति मार की पकड मे आ जाता है ।
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असयत मनुष्य दुर्वचनो से उसी प्रकार भडक उठते है, जिम प्रकार युद्ध मे वाणो से ग्राहत होने पर हाथी ।
१८ मेरा जीवन भी भद्र (मंगल) है और मरण भी भद्र है ।
सडमठ
१९ जिसको न जीवन की तृष्णा है और न मृत्यु का शोक है, वह ज्ञानी धीर पुरुष शोक के प्रसगो मे भी कभी शोक नही करता है ।
२०. अपने से बढकर अन्य कोई प्रिय नही है ।
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२१ कालिमा मे रहित शुद्ध श्वेत वस्त्र रंग को ठीक से पकड़ लेता है । ( इसी प्रकार शुद्ध हृदय व्यक्ति भी धर्मोपदेश को सम्यक् प्रकार से ग्रहण कर लेता है ।)
२२. पण्डित वह है जो जीते जी पापो को छोड़ देता है ।
२३ यदि सचमुच ही तुम दुःख से डरते हो और तुम्हे दुख अप्रिय है, तो फिर प्रकट या गुप्त किसी भी रूप मे पाप कर्म मत करो ।
२४. यदि तुम पाप कर्म करते हो या करना चाहते हो तो दुःख से छुटकारा नही हो सकेगा, चाहे भाग कर कही भी चले जाओ ।
२५. छिपा हुआ (पाप) लगा रहता है, खुलने पर नही लगा रहता । इसलिए छिपे पाप को खोल दो, आत्मालोचन के रूप मे प्रकट कर दो, फिर वह नही लगा रहेगा ।
२६. आर्य जन पाप मे नही रमते, शुद्ध जन पाप में नही रमते ।