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उदान को सूक्तिया
इकहत्तर
३६ तत्वदर्शी साधक को यह द्वैत नही होता कि यह मैं करता हूँ या कोई
दूसरा करता है ।
३७. विभिन्न मत पक्षो को लेकर झगड़ने वाले ससारबन्धन से कभी नही हो सकते ।
मुक्त
३८. जैसे पतंगे उड-उडकर जलते प्रदीप पर आ गिरते हैं, वैसे ही अज्ञजन हप्ट और श्रुतवस्तु के व्यामोह में फँस जाते हैं ।
३९ तभी तक खद्योत (जुगनू ) टिम टिमाते हैं, जब तक सूरज नही उगता । सूरज के उदय होते ही उनका टिम टिमाना वन्द हो जाता है, वे हतप्रभ हो जाते हैं ।
४०.
सूखी हुई नदी की धारा नही वहती, लता कट जाने पर और नही फैलती ।
४१. यदि पानी सदा सर्वदा सर्वत्र मिलता रहे, तो फिर कुए से क्या करना
?
४२. तत्वद्रष्टा ज्ञानी के लिए रागादि कुछ नही हैं ।
४३. आसक्त का चित्त चंचल रहता है । अनासक्त का चित्त चचल नही होता
है |
राग नही होने से आवागमन नही होता है ।
४४
४५. दान देने से पुण्य बढता है, सयम करने से वैर नही वढ पाता है ।