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धम्मपद की सूक्तिया
पचपन
२५. यदि हाय में घाव न हो तो उस हाय में विप लेने पर भी शरीर में विप
का प्रभाव नहीं होता है । इसी प्रकार मन में पाप न रखने वाले को
वाहर से कर्म का पाप नहीं लगता। २६. सभी प्राणी सुन चाहते हैं, जो अपने सुख की इच्छा से दूसरे प्राणियो की
हिंसा करता है, उसे न यहा सुन्व मिलता है, न परलोक मे।
२५. कठोर वचन मत बोलो, ताकि दूसरे भी तुम्हे वैसा न बोले ।
२८. अन्धकार से घिरे हुए लोग दीपक की तलाश क्यो नही करते ?
२६ जीवन की सीमा मृत्यु तक है।
३०. अल्पश्रु त मूढ व्यक्ति बैल की तरह बढता है, उसका मास तो बढ़ता है
कितु प्रज्ञा नहीं बढती है ।
३१ जैसा अनुशासन तुम दूसरो पर करना चाहते हो, वैसा ही अपने ऊपर भी
करो।
३२ आपका अपना आत्मा ही अपना नाय (स्वामी) है, दूसरा कौन उसका
नाथ हो सकता है ? ३३ शुद्धि और अशुद्धि अपने से ही होती है, दूसरा कोई किसी अन्य को शद्ध
नही कर सकता। ३४ उठो ! प्रमाद मत करो, सद् धर्म का आचरण करो। धर्माचारी पुरुष
लोक परलोक दोनो जगह सुखी रहता है।
३५ यह ससार अंघो के समान हो रहा है, यहां देखने वाले बहुत थोडे हैं ।
३६ कृपण मनुष्य कभी स्वर्ग मे नही जाते ।