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तिरेपन
धम्मपद की सूक्तिया १६ वह काम करना ठीक नहीं, जिसे करके पीछे पछताना पडे ।
१७. पाप कम ताजा दूध की तरह तुरत ही विकार नही लाता, वह तो राख,
से ढकी अग्नि की तरह धीरे धीरे जलते हुए मूढ मनुष्य का पीछा करता रहता है।
१८. मनुष्यो मे पार जाने वाले थोडे ही होते हैं, अधिकतर लोग किनारे-ही
-किनारे दौड़ते रहते हैं।
१९. गांव मे या जगल मे, ऊंचाई पर या निचाई पर जहा कही पर भी
अर्हत् विहार करते है वही भूमि रमणीय है।
२० व्यर्थ के पदो से युक्त हजारो वचनो से सार्थक एक पद ही श्रेष्ठ है, जिसे
सुनकर शान्ति प्राप्त होती है ।
२१. जो सग्राम मे हजारो मनुप्यो को जीत लेता है, उस से भी उत्तम सग्राम
विजयी वह है, जो एक अपने (आत्मा) को विजय कर लेता है ।
२२. वृद्धो की सेवा करने वाले विनयशील व्यक्ति के ये चार गुण सदा
वढते रहते है-आयु, वर्ग- यग, नुव और वल !
२३. आलसी और अनुद्योगी रहकर सौ वर्प जीने की अपेक्षा दृढ उद्योगी का
एक दिन का जीवन श्रेष्ठ है ।
२४. जैसे कि पानी की एक-एक दूंद से धडा भर जाता है, वैसे ही धीर पुरुष
योडा-थोडा करके भी पुण्य का काफी सचय कर लेता है।