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धम्मपद की सूक्तियां
इक्यावन
६. जिसने सत्कर्म (पुण्य) कर लिया है, वह दोनो लोक मे मुखी होता है ।
७. वहुत सी धर्म-महिताओ का पाठ करने वाला भी यदि उनके अनुसार आचरण नहीं करता है तो वह प्रमादी मनुष्य उनके लाभ को प्राप्त नही कर सकता, वह श्रमण नही कहला सकता, जैसे कि दूसरो की गायो को गिनने वाला ग्वाला गायों का मालिक नही हो सकता ।
८.
अप्रमाद अमरता का मार्ग है, प्रमाद मृत्यु का ।
६. अप्रमाद के कारण ही इन्द्र देवताओ मे श्रेष्ठ माना गया है ।
१०
चचल चित्त का दमन करना अच्छा है, दमन किया हुआ चित्त सुखकर होता है ।
११ दूसरे की त्रुटिया नही देखनी चाहिए, उसके कृत्य अकृत्य के फेर मे नही पडना चाहिए | अपनी ही त्रुटियों का, तथा कृत्य-अकृत्य का विचार करना चाहिए ।
१२. शील (सदाचार) की सुगन्ध सवमे श्रेष्ठ है ।
१३ जागते हुए को रात लवो होती है, थके हुए को एक योजन भी बहुत लम्बा होता है, वैसे ही सद्धर्मं को नही जानने वाले अज्ञानी का ससार बहुत दीनं होता है ।
१४ मूर्ख व्यक्ति जीवनभर पडित के साथ रहकर भी धर्मं को नही जान पाला, जैसे कि कलछी सूप (दाल) के रस को ।
१५ विज्ञ पुरुष एक मुहूर्तभर भी पंडित की सेवा मे रहे तो वह शीघ्र ही धर्म के तत्त्व को जान लेता है, जैसे कि जीभ सूप के रस (स्वाद) को ।