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सयुत्तनिकाय को सूक्तियाँ
उनतीस ३१. हथियार राहगीर का मित्र है, माता अपने घर का मित्र है....अपने किए
पुण्य कम ही परलोक के मित्र हैं।
३२. पुत्र मनुष्यो का आधार है ; भार्या (पत्नी) सब से बड़ा मित्र है।
३३. तृष्णा मनुष्य को पैदा करती है।
३४. तप और ब्रह्मचर्य विना पानी का स्नान है।
३५. श्रद्धा पुरुप का साथी है, प्रज्ञा उस पर नियत्रण करती है ।
३६. चित्त से ही विश्व नियमित होता है ।
३७. तृष्णा के नष्ट हो जाने पर सव वन्धन स्वय ही कट जाते है।
३८. संसार मृत्यु से पीडित है, जरा से घिरा हुआ है।
३६. राजा राष्ट्र का प्रज्ञान (पहचान-चिन्ह) है, पत्नी पति का प्रज्ञान है।
४० ऊपर उठने वालो मे विद्या सबसे श्रेष्ठ है, गिरने वालो मे अविद्या सबसे
वडी है।
४१. लोभ धर्मकार्य का वाधक है।
४२. आलस्य, प्रमाद उत्साहहीनता, असंयम, निद्रा और तन्द्रा-ये छह ।
जीवन के छिद्र है, इन्हे सर्वथा छोड़ देना चाहिए ।