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अंगुत्तरनिकाय की सूक्तियां
इकतालीस ७. भिक्षुत्रो ! दो आशाएं (इच्छाए) बड़ी कठिनता से टूटती हैं।
कौन ती दो? लाभ की आशा, और जीवन की आशा ।
८ भिक्षुओ ! सतार मे दो व्यक्ति दुलं न है ।
कौन मे दो? एक वह जो पहले उपगार कारला है, दाग वह कृतज्ञ जो किए
हुए उपकार को मानता है। ६. भिक्षुयो । मनार मे दो व्या तर
कौन से दो एक वह जो स्वय तृप्त है सन्तुष्ट है, और दूसरा वह जो दूसरो को तृप्त-सन्तुष्ट करता है। भिक्षुओ | दो दान है। कौन से दो? भोगो का दान और धर्म का दान । ""भिक्षुओ । उक्त दोनो दानो मे धर्म का दान (धर्मोपदेश) ही श्रेष्ठ है।
११. भिक्षुओ ! तीन धर्मों (कमों) से व्यक्ति को वाल (अज्ञानी) समझना
चाहिए। कौन से तीन ? काय के बुरे आचरण से, वचन के बुरे प्राचरण से और मन के बुरे
आचरण से। १२, अपने से शील और प्रज्ञा से हीन व्यक्ति के सग से मनुष्य हीन हो जाता
है, वरावर वाले के संग से होन नहीं होता है, ज्यो का त्यो रहता है । अपने से श्रेष्ठ के सग से शीघ्र ही मनुष्य का उदय-विकास होता है, अतः सदा श्रेष्ठ पुरुषो का ही सग करना चाहिए ।
१३ हे पुरुष | तेरी आत्मा तो जानती है कि क्या सत्य है और क्या असत्य
है ? अत. पापकर्म करने वाले के लिए एकान्त गुप्त (छुपाव) जैसी कोई स्थिति नहीं है।