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अगुत्तरनिकाय को सूक्तियां
पेतालीम
२३. भिक्षुओ! चार वल हैं ?
कोन से चार? प्रज्ञा का वल, वीर्य शक्ति का बल, अन्वद्य = सदाचार का बल और
संग्रह का वल। २४ मनोनुकूल सुन्दर वस्तु दान में देने वाला वैसी ही मनोज्ञ सामग्री प्राप्त
करता है।
२५. दरिद्र व्यक्ति यदि मण लेकर भोगो-पभोग में पड़ जाता है, तो वह नष्ट
हो जाता है। २६. द्वेष को दूर करने के लिए मंत्री भावना करनी चाहिए । मोह को दूर
करने के लिए प्रज्ञा भावना (अध्यात्म चिन्तन) करनी चाहिए ।
२७. श्रद्धा, शील, लज्जा, संकोच, श्रुत, त्याग और प्रज्ञा-ये सात धन हैं।
जिस स्त्री या पुल्प के पास ये धन हैं, वही वास्तव मे अदरिद्र (धनी) है, उसोका जीवन सफल है।
२८. विना किसी दण्ड और शस्त्र के पृथ्वी को जीतना चाहिए ।
२६. क्रोधी को ज्ञाति जन, मित्र और सुहृद् मभी छोड़ देते हैं ।
३०. क्रोधी कुरूप हो जाता है ।
३१. समृद्धि का सार क्या है ?
विमुक्ति (अनासक्ति) ही सार है ।
३२. मावुस ! धर्माचरण मे अरति का होना दुख है, और अभिरति का होना
सुख है।