________________
पेंतीस
संयुत्तनिकाय की सूक्तिया ६५ भिक्षुओ ! दो प्रकार के मूर्ख होते हैं-एक वह जो अपने अपराध को
अपराध के तौर पर नही देखता है, और दूसरा वह जो दूसरे के अप
राध स्वीकार कर लेने पर भी क्षमा नही करता है । ६६. भिक्षुओ ! सुख का हेतु क्या है ? शान्ति (प्रत्रब्धि) है,
भिक्षुओ | शान्ति का हेतु क्या है ? प्रीति है ।
६७. जो तृष्णा को बढ़ाते हैं, वे उपाधि को बढाते हैं । जो उपाधि को बढाते
वे दुःख को बढाते हैं।
६८ संसर्ग से पैदा हुमा राग का जगल अससर्ग से काट दिया जाता है ।
६६. श्रद्धाहीन श्रद्धाहीनो के साथ, निर्लज्ज निर्लज्जो के साथ, मूर्ख मूखों के
साथ और निकम्मे आलमी निकम्मे आलसियो के साथ उठते-बैठते हैं, मेल जोल रखते हैं।
___७० जो अनित्य है वह दु ख है, जो दुख है वह अनात्मा है, और जो अनात्मा
है-वह न मेरा है, न मैं हूँ, न मेरा आत्मा है ।
७१. सुख-स्पर्श से मतवाला न वने, और दु.ख-स्पर्श से कांपने न लगे।
७२. यह सारा गृह बन्धन अर्थात् ससार मन पर ही खड़ा है।
७३. ज्ञानी साधक को देखने मे देखना भर होगा, सुनने मे सुनना भर
होगा,....जानने मे जानना भर होगा, अर्थात् वह रूपादि का ज्ञाता द्रष्टा होगा, उनमे रागासक्त नही ।