________________
दीघनिकाय की सूक्तिया
सात
१७. 'जो बुराई है उसका त्याग करो और जो भलाई है उसको स्वीकार कर
पालन करो'- तात, यही आर्य (श्रेष्ठ) चक्रवर्ती व्रत है ।
१८. निर्धनो को धन न दिये जाने से दरिद्रता बहुत बढ गई और दरिद्रता के
बहुत बढ़ जाने से चोरी बहुत बढ गई।
___१६. धर्म ही मनुष्यो मे श्रेष्ठ है, इस जन्म मे भी, परजन्म मे भी ।
२० जीवहिंसा, चोरी, झूठ और परस्त्रीगमन-ये कलुषित कर्म हैं। इन
कर्मों की पडितजन प्रशसा नहीं करते ।
२१.
मनुष्य राग के वश होकर पापकर्म करता है, द्वीप के वश होकर पापकर्म करता है, मोह के वश होकर पापकर्म करता है, भय के वश होकर पापकर्म करता है।
२२. जो छन्द ( राग ), द्वेष, भय और मोह से धर्म का अतिक्रमण नही
करता, उसका यश शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की भाति निरन्तर बढता जाता है। जूआ आदि प्रमाद स्थानो का सेवन ऐश्वर्य के विनाश का कारण है। बुरे मित्रो का सग ऐश्वर्य के विनाश का कारण है । आलस्य मे पडे रहना ऐश्वर्य के विनाश का कारण है।
२३.
२४ शराव तत्काल धन की हानि करती है, कलह को बढाती है, रोगो का
घर है, अपयश पैदा करने वाली है, लज्जा का नाश करने वाली है
और बुद्धि को दुर्वल बनाती है । २५. जो काम पड़ने पर समय पर सहायक होता है, वही सच्चा मित्र है ।