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मज्झिमनिकाय को सूक्तिया
उन्नीस
२६. अकेला विचरना अच्छा है, परन्तु मूर्ख साथी अच्छा नही ।
२७. न अतीत के पीछे दौड़ो और न भविष्य की चिन्ता मे पडो। क्योकि जो
अतीत है, वह तो नष्ट हो गया, और भविष्य अभी आ नही पाया है।
२८. आज ही अपने कर्तव्य कर्म मे जुट जाना चाहिए । कौन जानता है, कल
मृत्यु हो आ जाए ? २६. धीरे से बोलना चाहिए, जल्दी नही ।
३० जल्दी बोलने वाले के शरीर को भी कष्ट होता है, चित्त भी पीडित
होता है, स्वर भी विकृत होता है, कण्ठ भी आतुर होता है, और जल्दी वोलने वाले की वात श्रोता के लिए अस्पष्ट एवं अविज्ञेय (समझ मे न याने बसी) होती है।
३१. राग, द्वेप एव मोह का उपशम (शमन) होना ही परम आयं उपशम है।
३२ भिक्षु, शात मुनि न जन्मता है, न बुढियाता है और न मरता है।
३३. कर्म, विद्या, धर्म, शील और उत्तम जीवन-इनसे ही मनुष्य शुद्ध होते हैं
गोत्र बोर धन से नहीं।
३४ जो कुछ उत्पन्न होता है, वह सव नष्ट भी होता है ।