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भगवती सूत्र की सूक्तियां
सड़सठ
७ हे आयं आत्मा ही मामायिक (समत्वभाव) है, और आत्मा ही सामा
यिक का अर्थ (विशुद्धि) है ।
(इन प्रकार गुण गुणी मे भेद नही, अभेद है ।) ८ गर्दा (आत्मालोचन) सयम है अगर्दा सयम नहीं है ।
६ अस्थिर वदलता है, स्थिर नही बदलता ।
अस्थिर टूट जाता है, स्थिर नहीं टूटता ।
• १० कोई भी क्रिया किए जाने पर ही मुख दुख का हेतु होती है, न किए जाने
पर नहीं । ११ मत्लग ने धर्मश्रवण, धर्मश्रवण से तत्त्वज्ञान, तत्त्वज्ञान से विज्ञान =
विशिष्ट तत्ववोध, विज्ञान से प्रत्याख्यान - सासारिक पदार्थो से विरक्ति, प्रत्याख्यान मे सयम, सयम से अनाथव-नवीन कर्म का अभाव, अनाश्रव से तप, तप से पूर्ववद्ध कर्मों का नाश, पूर्ववद्ध कर्मनाश से निष्कर्मता - नर्वथा कर्मरहित स्थिति और निप्कर्मता से सिद्धि-अर्थात् मुक्तस्थिति प्राप्त होती है।
१२ जीव न बढ़ते हैं, न घटते है, किन्तु सदा अवस्थित रहते हैं ।
१३. नारक जीवो को प्रकाश नही, अधकार ही रहता है ।
१४
जो जीव है वह निश्चित रूप से चैतन्य है, और जो चैतन्य है वह निश्चित रूप से जीव है।
१५ समाधि (सुख) देने वाला समाधि पाता है ।
१६ जो दुखित = कर्मवद्ध है, वही दुख-बन्धन को पाता है,
जो दुखित बद्ध नहीं है, वह दुख बन्धन को नही पाता।