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भाष्यसाहित्य की सूक्तिया
एक सौ पिच्चानवे
८७ मोह का उपशम होने पर ही धृति होती है।
८८. समय पर सहजतया जाग आ जाना 'निद्रा' है, कठिनाई से जो जाग आए
वह 'निद्रा-निद्रा है।
८९. साधक ज्ञान का प्रकाश लिए जीवन यात्रा करता है।
६० श्रमणो को सभी चेष्टा अर्थात् क्रियाएसयम के हेतु होती हैं।
६१. रागढ प पूर्वक की जाने वाली प्रतिसेवना (निपिढ आचरण) दर्पिका है
और राग द्वेप से रहित प्रतिसेवना (अपवाद काल मे परिस्थितिवश किया जाने वाला निपिद्ध आचरण) कल्पिका है। कल्पिका मे संयम की आराघना है और दपिका मे विराधना ।
६२. जिस प्रकार विपम गर्त मे पडा हुआ व्यक्ति लता आदि को पकड़ कर
ऊपर आता है, उसी प्रकार ससारगतं मे पड़ा हुआ व्यक्ति ज्ञान आदि का अवलवन लेकर मोक्ष रूपी किनारे पर आ जाता है।
६३ वह शोचनीय नहीं है, जो अपनी साधना मे दृढ रहता हुआ मृत्यु को
प्राप्त कर गया है । शोचनीय तो वह है, जो सयम से भ्रष्ट होकर जीवित घूमता फिरता है।
६४ स्नेह से रहित वचन 'परुप कठोर वचन' कहलाता है ।
६५ कृतमुख (विद्वान) के साथ विवाद नही करना चाहिए ।
६६. शिक्षित अश्व को क्रीडाएं विचारा गर्दभ कैसे कर सकता है ?