Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
भाण्यरूप शय्यातल है, टीका रूप उसके भाल या मजिल है और यह पंचवस्तु टीका उसकी सोपान श्रेणी है । '
अभयनन्दी की यह महावृत्ति १२,००० श्लोक परिमाण है । काशिका की तरह वृहत् है | इसकी निम्नलिखित विशेषताए हैं
१. अभयनन्दी ने अपनी इस वृत्ति में कात्यायन के वार्तिक और पतजलि के महाभाष्य से सार ले कर वार्तिक, परिभाषा और उपाख्यान लिख कर उन व्याकरण नियमों की पूर्ति की है जिनकी कमी उन्हें जैनेन्द्र के सूत्रो मे महसूस हुई ।
२ इस वृत्ति मे शिक्षासूत्र भी उपलब्ध होते है । भूत ११११२ की व्याख्या मे लगभग ४० शिक्षा-सूत्र दिये गये है ।
३ परिभाषाओं की व्याख्याए भी वृत्ति मे दी गयी है ।
४ अभयनन्दी ने अपनी वृत्ति मे अनेक उणादिसूत उद्धृत किये है। इसमे कतिपय प्राचीन पचपादी से मिलते हैं और कुछ पाठान्तर है । इसलिए जैनेन्द्र के उणादि सूत्रो को जानने के लिए इस महावृत्ति का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है ।
५ अनेक नवीन शब्दो का साधुत्व प्रदर्शित किया गया है । जैसे सूत्र १|१|EE की व्याख्या मे 'प्रविनय्य' प्रयोग की सिद्धि मे असाधारण पाण्डित्य दिखाया गया है ।
६ महावृत्ति मे दिये गये उदाहरणो से अनेक ऐतिहासिक तथ्य प्रकाश मे आते है | सुत्र ११४१४ की वृत्ति मे दिये गये शरद मथुरा रमणीया' मास कल्याणी काची' उदाहरणो से ज्ञात होता है कि काचीपुरी मे मासव्यापी उत्सव होता था तथा मयुरा मे शारदोत्सव मे विशेष शोभा की जाती थी ।
७ महावृत्ति के उदाहरणो मे तीर्थंकरो, महापुरुपो, ग्रन्थो और ग्रन्यकारी के नाम भी आये है । जैसे
सूत्र १४/१५ मे 'अनुशालिभद्रम्' माढ्या, 'अनुसमन्तभद्र तार्किका ' । सूत्र १|४|१६ मे 'उपसिंहनन्दिन कवय', 'उपसिद्धसेन वैयाकरणा'। सूत्र १|३|१० मे 'आकुमार यश समन्तभद्रस्य' ।
प्रभाचन्द्र का शब्दाम्भोजभास्कर न्यास
आचार्य प्रभाचन्द्र ने जैनेन्द्र व्याकरण पर 'शब्दाम्भोजभास्कर' नाम से न्यास की रचना १६,००० श्लोक परिमाण मे की थी । इस न्यास के अध्याय ४, पाद ३, सूत्र २११ तक की हस्तलिखित प्रतिया मिलती है । शेष ग्रन्थ अभी तक उपलब्ध नही हुआ ।
आचार्य प्रभाचन्द्र विक्रम की ११वी शती के प्रसिद्ध विद्वान् थे । उनके ग्रन्यो की प्रशस्तियों और शिलालेखो " से ज्ञात होता है कि प्रभाचन्द्र धाराधीश भोजदेव