Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar

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Page 592
________________ १०० मस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोण की परम्परा रुद्र मयूर रहस्यभेदी शिर हस कुक्कुट कोकिला गुद पडरगो पयलायभत्तो પત્તનીહો पवरग પાડનસ ડખો પાયખહળો. पिअमाहवी पिट्टत पिंगगो पुडइ वप्फाउल वहुमुहो वभहर बहुरावा भयवगामो भाउज्जा મિસિના भुक्खा भूअण्णो भूमिपिसाओ માડમોળી मउ मगलसज्झ મગ્ન मज्झिमगड મડવોક્સા मकट પિડીતમ્ મયૂળ દુર્બન कमलम् શિવા मोढेर कम् पाण्डुराग प्रचलाक-भक्त पर्यस्तजित प्रवराङ्गम् पाटलशकुन पादप्रहण प्रियमाधवी पृष्ठान्त पिङ्गाङ्ग पुटाकतम् वाष्पाकुलम् बहुमुख ब्रह्मगृहम् वहुरावा भयवगामो ઝાતુર્નાયા वृसिका वुभुक्षा भू+यज्ञ भूमिपिशाच. मतिमोहिनी मृदुकम् मङ्गलसाध्यम् मर्यादा मध्यमकाण्डम् भृत+वाह्या મૃત मणिनागगृहम् मणिरचिता માનવતા મનવાસ महाङ्ग મમૃખમ્ महानट ખે વસે યજ્ઞ ताल વીનમ્ વનવાપરોષ ક્ષેત્રમ્ उदरम् शिविका मडो मणिणायहर मणिरा मधाओ मणिवासो महगो मसिण महानडो समुद्र कटिसूत्रम् पाढ्य कन्दप उष्ट्र रम्यम् रुद्र

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