Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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१०२ संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
कुन्द श्वा
मन्त्री
राहु
वालवासो वासदी વાસવાનો वाहगणओ વિનુત્તત્રિો विममय विसारओ विहुडुओ વેબાનો. वेणुणासो सरपसहो सालासो स३ सिलिपो सत्तावीमजोअणो सहाल समुणवणी मिगिणी मिसिर મિડફો मिहरिणी मितरिल्ला मिहिण मिही नीरोहोनिमा मीतगती मुजट्टो
वालपाश
शिरआभरणम् पासन्ती वासपाल विवाहगणक विलुप्तहृदय य काले कार्य कर्तुं न जानाति विपमयम्
भल्लातकम् વિવાર
धृष्ट विधुन्तुद વેનાના
अन्धकार વેળુનાશ
भ्रमर खेरवृषभ
धर्मार्थमनोवृषभ सदालक्षक सनीशिशु
स्कन्द સપ્તવાતિદ્યોતના
इन्दु शब्द + 'आल'
नूपुरम् સમુદ્રનવનીતમ્
अमृतम्, चन्द्र शृङ्गिणी शिशिरम्
दधि शिखण्ड | 'इल्ल'
वाल , मयूर શિવરણી
માનતા शिखर डल्ला'
માનતા शिखिन्
स्तन શિવ
कुक्कुट शिरउपहासिका
लज्जा सिंहनसी
करमन्दिका सुरज्येष्ठ
वरुण सुखस्वावा मूर्यध्वज
વિન पोडणावर्तक
श हरिचन्दनम्
पुपु.मम् हरित
कल्यम्
मुहाणी
मयूरी
नइओ गोल्हावतो हरिन
शुक
हिजो
त्य
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