Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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आधुनिक जैन कोश ग्रन्थो का मूल्याकन ३६६ किया है। डॉ० मेहता और डॉ० चन्द्र प्राकृत और जैन क्षेत्र के लिए अज्ञात नही। दोनो विद्वानो के अनेक शोधग्रथ और निवन्ध प्रकाशित हो चुके हैं। डॉ० मेहता के द्वारा लिखित ग्रथो मे प्रमुख है Jaina Psycholgy, Jaina Culture, Jaina Philosophy जैन आचार, जैन साहित्य का वृहद इतिहास, जन-धर्म-दर्शन आदि । डॉ० चन्द्र ने विमलसूरि के ५उमचरिय का अंग्रेजी मे अध्ययन प्रस्तुत किया है जो प्रकाशित हो चुका है। इन दोनो विद्वानो ने उपर्युक्त कोश को रचना डॉ० मलाल शेखर के "A Dictionary of Pali-Proper names के अनुकरण पर की है। जैन साहित्य, विशेषत आगमो मे उल्लिखित व्यक्तिगत नामो के सदर्भ मे यह कोश अच्छी जानकारी प्रस्तुत करता है।
१२ Jaina Bibliography . (Universal Encyclopaedia of JainReferences)
लगभग २५ वर्ष पहले बाबू छोटेलालजी ने एक Jaina Bibliography प्रकाशित की थी जो आज उपलब्ध नहीं है। वीर सेवा मदिर दिल्ली की ओर से एक और Jaina Bibliography प्रकाशित हो रही है। डॉ० ए० एन० उपाध्ये के सपादन मे इसके लगभग दो हजार पृष्ठ मुद्रित हो चुके है। शेष भाग का कार्य डॉ० भागचन्द्र जैन भास्कर, नागपुर कर रहे है। इस वर्ष के अत तक उसके सम्पूर्ण प्रकाशित हो जाने की आशा है । प्रस्तुत Bibliography मे देश-विदेश मे प्रकाशित ग्रयो और पत्रिकाओ से ऐसे सदर्भो को विषयानुसार एकत्रित किया गया है जिनमे जैनधर्म और सस्कृति से सम्बद्ध किसी भी प्रकार की सामग्री प्रकाशित हुई है । इसमे निम्नलिखित शीर्षको के अन्तर्गत विषय सामग्री सकलित की गई है। Encyclopaedias, Dictionaries Bibliographtes, gazetteers, Census Reports and guides, Historical and Archaeological accounts, Archaeology (including Museum), Archaeological Survey, History, Geography, Biography, Religion, Philosophy and Logic, Sociology, Ethnology, Educational statistics, Languages, Literature, general works इन समस्त शीर्षको को आ० विभागो मे विभाजित किया गया है। लगभग २०० पृष्ठो के word Index का प्रकाशन होना बाकी है । इस वृहदाकार ग्रथ मे देशी-विदेशी विद्वानो द्वारा लिखित लगभग ३००० पुस्तको और निवन्धो आदि का उपयोग किया गया है फिर भी कुछ आवश्यक सामग्री सकलित होने से रह गयी है। इसके बावजूद यह प्रथ निविवाद रूप से प्राचीन भारतीय संस्कृति, विशेषत जैन सस्कृति के संशोधन के लिए अत्यंत उपयोगी सन्दर्भ ग्रथ कहा जा सकता है ।