Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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४१० सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोण की परम्परा
२ इसका मपादन १९वी शताब्दी के अन्त तक विकसित कोशपद्धति के
अनुसार तो हुआ ही है, भारतीय कोश-परम्परा का भी इसमे समावेश और निर्वाह हुआ है। ३ साधनो के कम होते हुए और जैन ग्रन्थो के मुद्रित रूप मे उपलब्ध न होते हुए भी इसकी सकलना जैन ग्रन्थागारो मे उपलब्ध पाडुलिपियो के माध्यम से हुई है। निश्चय ही इसकी सकलना मे अपार श्रम हुआ है, दुर्लभ सामग्री-स्रोतो के दोहन की दृष्टि से इस महाकोश ने एक अप्रतिम कीति
मान स्थापित किया है। ४ जन साधु कितने अध्ययनशील होते है, श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरि ने यतियो मे से शिथिलाचार समाप्त करने के लिए महाकोश की सकलना का किस तरह का उपयोग किया कि उनका समकालीन यति वर्ग उनके साथ इस काम मे प्राणपण से जुट गया, किस तरह यातायात और सचार-साधनो की कमी के बावजूद धर्मसाधना करते हुए जैन साधुओ ने इस महान कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न किया, प्रस्तुत कोश इस सबका एक सर्वोत्तम
प्रामाणिक दस्तावेज है। १० लेश्याको। यह जैन वाड्मय का श्वेतावर सामग्री-स्रोतो पर आधूत सर्वप्रथम विषय-कोश है । यद्यपि कोशकारो की योजना है कि वे दिगम्बर सामग्रीस्रोतो पर आधारित एक अन्य लेश्या-कोश सपादित करें, तथापि उनकी इस परिकल्पना ने अभी कोई आकार ग्रहण नही किया है। प्रस्तुत कोश जैन कोशविज्ञान के क्षेत्र मे एक ऐतिहासिक आरभ है। समय कोश ज्ञानिक विधि से सपादित है, इसीलिए इसे हम केवल लेश्या-सबधी शब्दो की विवरणिका नही कहेगे, परन् एक ठोस कोश-रचना का अभिधान देगे। विद्वान् कोशकारो ने प्रस्तावना मे कोश-रचना पद्धति मेथाडोलोजी पर भी विशद प्रकाश डाला है । सपूर्ण योजना, जिसके अन्तर्गत कई महत्वाकाक्षी सकल्प घोपित है, भारतीय कोश-रचना के क्षेत्र मे एक महत्त्वपूर्ण देन है। कोशकारो के शब्दो मे 'लेश्या-कोश हमारी कोण-परिकल्पना का परीक्षण ट्रायल है, अत इसमे प्रयमानुभव की अनेक त्रुटिया हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है।"
प्रस्तुत कोश एक विशिष्ट कोश है। इन दिनो तीन प्रकार के कोश सामने आये है (१) विषय-कोश, (२) ग्रन्थ-कोश, (३) ग्रन्थकार-कोश। कोशसपादको ने अनुसधित्सुओ और अध्येताओ की उन कठिनाइयो का भी ध्यान रखा है, जो किसी विषय के गहन अध्ययन अनुसंधान मे व्यवधान उत्पन्न करती है। उन्होने इस तरह के दो-तीन मस्मरण भी प्रस्तावना मे दिये है ।३० वैसे कोशकारो ने विशिष्ट पारिभापिक, दार्शनिक, आध्यात्मिक विपयो की एक व्यापक सूची बनायी थी और तदनुसार १००० विषय भी चुने थे, किन्तु बाद मे इस तालिका