Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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शब्दकोश की प्राचीन पद्धति ४२१
भाषा है प्राकृत नियुक्तियो मे अनेक स्थलो पर एकार्थक शब्दो की चर्चा है । • प्रवचन के एकार्थक शब्द सुयधम्म ( श्रुतधर्म), तित्थ (तीर्थ), मग्ग (मार्ग), पावयण (प्रावचन), पवयण (प्रवचन) ।
• सूत्र के एकार्थक शब्द सुत्त (सून), तत (तन), गथ (ग्रन्थ), पाढो (पाठ), सत्य (शास्त्र) | १२
अनुयोग (अर्थ) के एकार्थक शब्द अणुयोग (अनुयोग), नियोगो (Phulu), HIH (H141), fanını (faxiur), afay (alfa) 1?? • सामायिक शब्द के पर्याय सामाइय (सामायिक), समइय (समयिक), सम्मावाओ (सम्यग्वाद), समास (समास ), सखेवो (संक्षेप), अणवज्ज (अनवद्य), परिण्णा (परिज्ञा ), पपक्खाणे (प्रत्याख्यान) ।"
साम (साम), सम (सम), सम्म (सम्यक् ), इग (इक) १५ । समया (समता), AHITI (Hfuqca), QHET (vaen), Afa (afra), ylalga (gfalen), सुह (शुभ), अनिंद (अनिन्द्य), अदुगुछिअ ( अजुगुप्सित), अगरिहिअ (अग्रहित), अणवज्ज (अनवद्य) १६
जैन आगमों के व्याख्या साहित्य मे चूर्णियों का महत्वपूर्ण स्थान है । अनेक आगामो पर चूर्णिया लिखी गई । ये सब संस्कृत + प्राकृत मे लिखी गई । इनका रचनाकाल विक्रम की पाचवी-सातवी शताब्दी है । जिनदास महत्तर चूर्णिकारो मे अग्रणी हैं । उनकी अनेक चूर्णिया आज उपलब्ध है । दशवेकालिक सूत्र पर एक प्राचीन चूर्णि जैसलमेर भडार मे मुनि पुण्यविजय जी को प्राप्त हुई थी । उन्होने उसके फोटो प्रिन्ट करवाए। वह अगस्त्यसिंह स्थविरकृत है और उसका कॉल विक्रम की तीसरी से पाचवी शताब्दी का अन्तराल माना जाता है । वह अभी-अभी प्रकाशित हुई है । उसका सर्वप्रथम उपयोग हमने 'दसवे आलिय' के सपादन तथा विवेचन के समय किया है । इन चूर्णियो मे अनेक शब्दो के पर्याय-नाम उल्लिखित है । कुछ उदाहरण इस प्रकार है
● मग्गतोत्ति वा पिउत्ति वा । १७
• अप्पियववहारियति वा विसेसादिट्ठति वा एगट्ठा १
• भाणति वा परिच्छेदोति वा ग्रहणपगारोत्ति वा एगट्ठा ।"
• अभिप्पायोत्ति वा बुद्धिनिवा एगट्ठ
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• उज्जोत करेतीति प्रकटन करोतीति प्रकाशयतीत्यर्थं • खमत्ति वा तितिक्खत्ति वा कोहनिरोहति वा । आचार शब्द के पर्यायवाची नाम-
R ܐ
• 31412 (311), Malà (Alala),
● आगालो (आगाल), आगारो (आगार), ● आसासो (आश्वास)।"