Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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सस्कृत के जैन पौराणिक काव्यो की शब्द-सम्पति ४४७
(६८।११), पट्टशाला (६८।११), नाट्यशाला (६८।११), वापी (६८।११), सर (६८।१२), सोपामक (६८।१२), चैत्यकूट (६८।१२), रम्भादि विभूपितसवार (६८।१३), कनकादिरजश्चित्रमण्डलादि (६८।१३), घृत-क्षीरादिपूर्ण कलश (६८।१४), मुक्तादामादिसक० (६७।१४), जातरूपमय रजतादिमय मणिरत्नशरीर ५ (६८।१८) ५८ह (६८।१९), तूर्य (६८।१९) काहल (६८।१६) तथा शख (६८।१६) आदि। __ ७ जनदर्शन-सम्बन्धी शब्द सत्ता (२११५५), तत्व (२११५५), जीव (१।१५५), अजीव (२।१५५), सिद्ध (२।१५५,१०५,१४६),ससारवाम् (२।१५५), भव्य (२।१५६), अभव्य (२।१५६), जिनदेशित तत्त्व (२।१५८), एकेन्द्रियादि (२।१५८), गति (२।१५९), काय (२।१५९), ज्ञान (२।१५९), योग (२।१५९), वेद (२।१५९), लेश्या (२।१५६), कषाय (२।१५९), शान (२।१५६), दर्शन (२।१५९), चारित्य (२।१५९), गुणश्रेण्यधिरोहण (२।१५६), निसर्गशास्त्रसम्यक्त्व (२।१६०), नामादिन्यासभेद (२।१६०), सदाधष्टानुयोग (२।१६०), चेतन (२।१६०), ससारिजीव (२।१६१), नारक (२।१६२), तिर५चा (२।१६३), मानुप (२।१६४), देव (२।१६५) चतुर्गति (२।१६६), कर्मभूमि (२।१६६), धर्मोपार्जन (२११६६) मिथ्यादृष्टि (२।१८६), मिथ्यादर्शन (२।१८७), समाधि (२।१८६), निदानकृत दोष (२।१८६), वासुदेव (२।१८६), वलदेव (२।१६१), षोडश जिनकर्म (२।१६२), तीर्यकृत (२।१६२), कष्टिकलक (२।१६३), घातिकमविनाशन (१२२।७१), पृथिवी (१०५।१४१), आप (१०५।१४१), तेज (१०५।१४१), मातरिश्वा (१०५।१४१), वनस्पति (१०५।१४१), त्रम (१०५।१४१), जीव (१०५।१४१), निकाय (१०५।१४१), धर्म (१०५।१४२, २।१५७), अधर्म (१०५।१४२, २११५७), वियत् (१०५।१४२), काल (१०५।१४२), जीव (१०५।१४२), पुद्गल (१०५।१४२), द्रव्य (१०५।१४२), सप्तमगीवचामार्ग (१०५।१४३), प्रमाण (१०५।१४३), नय (१०५।१४३), एकद्विनिचतु पञ्चहृषीकेषु सत्त्वम् (१०५।१४४), सूक्ष्यमत्वादरभेद (१०५।१४५), भव्याभव्यादिभेद (१०५।१४६), जीवद्रव्य (१०५।१४६) उपयोग (१०५।१४७), अष्टविध ज्ञान (१०६।१४८), चतुर्धा दर्शन (१०५।१४८), ससारी (१०५।१४८), विमुक्त (१०५।१४८), सचित्त (१०५।१४८) वितस् (१०५।१४८), स्थावर (१०५।१४६), शेषक (१०५।१४६), पञ्चेन्द्रिय (१०५।१४६), गर्भसम्भव (१०५।१५०), उपपाद (१०५।१५०) नारक (१०५।१५१), सम्मूर्छन (१०५।१५१), औदारिक (१०५।१५२), वैक्रिय (१०५।१५२), आहारक (१०५।१५२), तेजस् (१०५।१५२), कार्मण (१०५।१५२) सूक्ष्म (१०५।१५२), चारणपि (१२२१७१), केवल (१२२।७३) केवलज्ञान (३६७५) आदि ।
८ ब्रह्माण्डकल्पना-सम्बन्धी शब्द अनन्तालोक (१०५:१०६) लोक
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