Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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संस्कृत के जैन पौराणिक काव्यो की शब्द-सम्पत्ति ४४१
(२२।२४६), दीपा। (२२।२४६), कल्पन (२२।२४६), स्नगग (२२।२४६), भावनेन्द्र (२२।२४६), सिद्धार्थपादप (२२१२५१), कल्पद्रुम (२२।२५२), सभागृह (२२।२५३), प्रतोली (२२।२५६), परिवीथी (२२।२५६), सुरशिल्पिनिर्मित प्रासादतक्ति (२२।२५६) अधिष्ठानवन्धन (२२।२५७), कान्त भित्ति (२२।२५७), रत्नचित्रित (२२।२५७), सहयं (२२।२५८), द्वितल (२२।२५८), त्रिचतुस्तल (२२।२५८), चन्द्रशाला (२२।२५८), वभिन्छन्दशोभी (२२।२५८), कूटागार (२२।२५६), गन्धर्व (२२।२६१), सिद्ध (२२।२६१), विद्याधर (२२।२६१), पन्नग (२२।२६१), किन्नर (२२।२६१), गान (२२।२६२), वादिनवादन (२२।२६२), सगीतन्टेत्यगोष्ठी (२२ २६२), नवस्तूप (२२।२६३), सिद्धाहत्प्रतिविम्बोधचिनमूति (२२।२६४), नवकेवललब्धि (२२।२६६), भव्य २२२२६६), नभ स्फटिकसाल (२२।२७०), सद्वृत्त (२२।२७०), खगेन्द्र (२२।२७१), द्वारोपान्त (२२।२७४), सताल (२२।२७५), सुप्रतिक (२२।२७५) गदादिपाणिभौमभावनकल्पज (२२।२७६), महावीप्यन्त। षोड५ भित्ति (२२।२७७) श्रीमण्ड५ (२२।२८०), गुह्यक (२२।२८३), योजनप्रमित (श्रीमण्ड५) (२२।२८६), देव (२२।२८६), देव (२२।२८६), दानव (२२।२८६), वैदूर्य रत्ननिर्माण प्रपमा पीठिका (२२।२६०), षोडशसोपान मार्ग (२२।२६१), षोऽशान्तर (२२।२६१), सभाकोष्ठप्रवेश (२२।२६१), धर्मचक्र (२२।२६२), यक्षमूर्धा (२२।२६२), सहस्रार (२२।२६३), हिरण्मय द्वितीय पी० (२२।२६४), सिद्धाटगुणनिर्मलध्वज (२२।२६६), सर्वरत्नमय तृतीय पी० (२२।२६८), गिमेदवल पी० (२२।२६६), सिद्धपरमेष्ठी (२२।३०४), विभाग (२२।३१२), जिनास्थायिका (२२।३१२), कंवल्यपूजा (२२।३१५), अमरनिकाय (२२।३१५), समवसरण भूमि (२२१३१५), आस्थानभूमि (२२।३१६) ।
प० पन्नालाल जैन साहित्याचार्य के द्वारा दी गयी सूचियो मे इन सभी शब्दो का समावेश नही हो पाया है। आस्थानमण्डल, मगलादर्श, कटिसूत्र, जिनास्यानभूमि, भरकत, हेमस्तम्भावलम्बिन तोरण, स्तम्भचतुष्टय, पीठिका, निमरवल पी०, छत्रत्रय, जलखातिका, प्रथम प्राकार, द्विपहरिव्याघ्ररूप मिथुन, गोपुर, अनुतोरण उद्बद्धाभरण, नवनिधि, महावीथी, कैतवा , चतस्त्रोवनवीय, आकोडमण्डप, पनचतुष्टया स्त्रग्ध्वज, अर्जुननिर्माण, द्वितीय साल, अधिष्ठानबन्धन, नवस्तूप, त्रिमेखल पीठ तथा समवसरणभूमि आदि अनेक शब्द इन सूचियो मे स्थान नही पा सके है जबकि ये विशिष्ट, पारिभाषिक एवं महत्वपूर्ण है और अपने सास्कृतिक और प्रासगिक आशय का स्पष्टीकरण चाहते है। इन शब्दो के इन सूचियो मे समावेश न होने के कारणो मे सम्पादक महोदय के लिए इन शब्दो का साधारणत्व अथवा अनुवाद के समय इनका अर्थ-विधान कर देने पर यहा पुनरुक्ति