Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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३९८ संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
शिक्षण, कर्म-सिद्धान्त, श्रद्धा-विन्दु, द्रव्य-विज्ञान, कुन्दकुन्द-दर्शन आदि ग्रथ उल्लेखनीय है।
१० जनलक्षणावली
प्रस्तुत ग्रथ के संपादक प० पलिचन्द्र जी सिद्वान्त शास्त्री है, जिन्होने अनेक कठिनाइयो के बावजूद इस ग्रथ का सपादन किया। उनका जन्म सं० १९६२ मे सोर (शासी) मे हुआ और शिक्षा का बहुत र माग स्याहाद विद्यालय वाराणसी मे पूरा हुआ। सन् १९४० से लगातार साहित्यिक कार्य में जुटे हुए है। डॉ. हीरालाल जी के साथ उन्होंने पट्खण्डागम (धवला)के छह से सोलह भाग तक का सपादन और अनुवाद किया। इसके अतिरिक्त जीवराज जनप्रयमाला से आत्मानुशासन, पुण्याश्रव, कयाकोण, तिलोयपणत्ति और पवनन्दिपचविशतिका हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित हुए। लक्षणावली के अतिरिक्त वीर सेवा मदिर से ध्यानशतक भी विस्तृत प्रस्तावना के साथ प्रकाशित हुआ है। आप मौन सावक और कर्मठ अध्येता है।
लक्षणावली एक जैन पारिभाषिक शब्दकोश है। इसमे लगभग ४०० दिगम्बर और श्वेताम्बर ग्रयो से ऐसे शब्दो का सकलन किया गया है, जिनकी कुछ न कुछ परिभाषा उपलब्ध होती है। सभी सम्प्रदायो मे प्राय ऐसे पारिभाषिक शब्द उपलब्ध होते हैं। उनका ठीक-ठीक अभिप्राय समझने के लिए उन-उन ग्रथो का आश्रय लेना पड़ता है । जैनदर्शन के मदर्भ मे इस प्रकार के पारिभाषिक शब्दकोश की आवश्यकता थी जो एक ही स्थान पर विकास क्रम की दृष्टि से दार्शनिक परिभाषाओ को प्रस्तुत कर सके। इस कमी की पूर्ति लक्षणावली ने भलीभाति कर दी। इसमे परिभाषाओ के साय ही सक्षिप्त हिन्दी अनुवाद भी कुछ भिन्न काटे टाइप मे दिया गया है। अनुवादित ग्रथ भाग का क्रम भी साथ मे अकित किया गया है। अनेक वर्षों के परिश्रम के बाद इस ग्रथ का मुद्रण हो पाया है। लगभग १०० पृष्ठो की शास्त्री जी द्वारा लिखित प्रस्तावना ने इसे और भी अधिक सार्थक बना दिया। श्री जुगलकिशोर मुख्तार और वाबू छोटेलाल की स्मृतिपूर्वक इस ग्रथ को प्रकाशन हुआ है । अभी इसके दो भाग क्रमश १९७२ और १९७५ई० मे प्रकाशित हुए है जिनमें लगभग ७५० पृष्ठ मुद्रित है। तृतीय भाग मुद्रणाधीन है। ११ ए डिक्शनरी ऑफ प्राकृत प्रापर नेम्स __A Dictionary of Prakrit Proper names का सकलन और सम्पादन डॉ० मोहनलाल मेहता और डॉ० के० आर० चन्द्र ने सयुक्त रूप मे किया है और एल० डी० इन्ट्रीट्यूट, अहमदाबाद ने उसे सन् १९७२ मे दो भागो मे प्रकाशित