Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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भिक्षुशब्दानुशासन का तुलनात्मक अध्ययन १७३
आचार्य पूज्यपाद देवनन्दि ने अपने शब्दानुशासन में निम्नलिखित ६ आचार्यो
के नाम का उल्लेख किया है
१ गुणे श्रीदत्तस्यास्त्रियाम् १|४|३४ २ कृवृषिमृजा यशोभद्रस्य श१शह ३ शद् भूतवले ३।४१८३
४ रातेः कृति प्रभाचन्द्रस्य ४।३।१८७ ५ वेत्ते सिद्धसेनस्य ५।१।७
६ चतुष्टय समन्तभद्रस्य |४| १४०
इन नामोल्लेखो से विदित होता है कि जैनेन्द्र से पूर्ववर्ती ये ६ वैयाकरण थे । परन्तु इन्होने किसी व्याकरणग्रन्थ की रचना की थी, उसका कोई पुष्ट प्रमाण इस समय उपलब्ध नही होता । फिर भी कहा जा सकता है कि ये विशिष्ट वैयाकरण थे, जिनका व्याकरण के प्रसार मे महत्त्वपूर्ण योग रहा होगा । पाणिनि व्याकरण मे भी आये हुए शाकल्य, गार्ग्य, गालव, स्फोटायन प्रभृति के सम्बन्ध मे भी बहुतो की ऐसी ही धारणायें हैं ।
जैन व्याकरण परम्परा मे अग्रिम तथा अन्तिम कडी के रूप मे “भिक्षुशब्दानुशासन” का नाम आता है । इसके रचयिता तेरापन्थ सम्प्रदाय के मुनि श्री चौयमल्ल है । इसकी रचना बीकानेर राज्यान्तर्गत छापर ग्राम मे की गई । विक्रम सम्वत् १९८८ माघ शुक्त त्रयोदशी शनिवार को पुष्य नक्षत्र मे यह ग्रन्थ पूर्ण किया गया, जैसा कि इसमे उल्लेख किया गया है |
भिक्षु शब्दानुशासन का परिमाण इसमे आठ अध्याय हैं और प्रत्येक अध्याय मे चार चरण है | सूत्र सख्या कुल ३७५१ है । इन सूत्रो के ऊपर आयुर्वेदाचार्य आशुकवि प० श्री रघुनन्दन शर्माद्वारा रचित वृहद्वृत्ति है । इसमे सूलो की प्रोढ तथा विस्तृत व्याख्या की गई है। भिक्षुशब्दानुशासन की यह सूत्र संख्या जैनेन्द्र तथा शाकटायन के सूत्रो से अधिक है । निम्नलिखित तालिका से यह बात स्पष्ट है
पाणिनि अध्याय आठ, पाद वत्तीस, कुल सूत्र ३६८२ । इसमे लौकिक और वैदिक दोनो प्रकार के सूत्र है ।
जैनेन्द्र अध्याय पाच, पाद वीस, तथा सम्पूर्ण सूत्र २६६३ है । अध्याय चार, पाद सोलह, सम्पूर्ण मूत्र ३२३६ हैं ।
शाकटायन
शब्दों की सिद्धि मे पाणिनि के सूत्रो की अपेक्षा भिक्षुशब्दानुशासन के सूत्रो की अधिकता का कारण इसकी लाघव तथा सरलीकरण की प्रक्रिया है । मूलत व्याकरण को सरलतया छाती को वोधगम्य कराना ही इसका उद्देश्य है । इसलिये पाणिनि के अधिकाश लम्बे सूत्रो को कई खण्डो में विभाजित करके छोटे छोटे सूत्र इसमें बनाये गये है । उदाहरण के लिये पाणिनि सूत्र “टोड मिडसा मिनात्स्या " इस सूत्र को लिया जाय । यह सूत्र टा, डसि डस् प्रत्ययो के स्थान पर क्रमश इन,