Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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प्राकृत-अपभ्रंश का राजस्थानी भाषा पर प्रभाव ३२५
धीमै धीमै हालत पाणी मे
(जागती जोत, पृ० ५०) मे के अतिरिक्त 'माय' का भी प्रयोग होता है 'उणरै माय' । तब भी यह कहना पडेगा कि 'मे' का ही प्रयोग अधिक होता है या फिर शून्य का।मां वाले प्रयोग भी मिलते है, पर 'मे' की तुलना मे कम।
उपयुक्त विभक्ति प्रत्यय और परसर्गो मे से परसों की परिगणना इस प्रकार की जा सकती है इनका प्रयोग प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी मे होता रहा है
कर्म नई, प्रति, रहई करण - कार, नई, पाहि, साथि सिउँ सप्रदान कन्हई (कन) नई, मा८३ (माट) अपादान कन्हई, लउ, थउ, थक, थाकी, थी, पासइ,लगइ,
लगी, हुतउ, हुती । सबध करउ, तणउ, नउ
अधिकरण ताई, पास३, मझारि, माझि, माँ, माहि इन्ही से विकसित रूप आधुनिक राजस्थानी मे प्रयुक्त होते हैं। अतएव इस दृष्टि से प्राकृत--अपभ्र श का प्रभाव निर्विवाद है।
क्रियापद ___ अपभ्र श व्याकरण मे हेमचंद्र ने तिड् रूपो से सबद्ध केवल सात सूत्र दिए है। इनमे से ५ वर्तमान काल का विधान करते हैं तथा दो भविष्य और आशा का निर्देश करते है। भूतकालिक प्रयोग के लिए अपभ्र श मे कृदन्त रूप) का प्रयोग होता रहा। पूर्वकालिक और तुमुनन्त अर्य मे अनेक प्रत्यय प्रयुक्त होते थे। वर्तमानकालिक कृत् प्रत्ययो से निष्पन्न रूप विशेषणवत् भी प्रयुक्त हुए है और क्रिया के स्थान पर भी।
अस्तिवाचक सहायक क्रिया इसकी व्युत्पत्ति 'भू' और ऋच्छ धातु से हुई है। 'भू' धातु से होवॐ और ऋछ से अवउँ (प्राचीन पश्चिमी राजस्थानी)। 'भू' धातु से बनने वाले रूप निम्नलिखित है सामान्य वर्तमान काल अन्य पुरुष एकवचन हुइ, होइ (सभवति >अ५ होइ) प्राकृत मे
हुवइ मिलता है। आधुनिक मारवाडी मे हुई
व्है प्रयुक्त होता है। अन्य पुरुष बहुवचन हुई, हुइ, होई, होइ सयुक्त वर्तमान काल की रचना मे 'हुइ' के साथ सहायक क्रिया छवउँ का वर्तमान कालिक रूप जोडा जाता है हुई ७३ =होता है।