Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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३४४ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोण की परम्परा
व्याकरणिक ५५ है, किन्तू कोणगत शब्द एक निश्चित अर्थ का वाचक है । उदाहरण के लिए, "मुझे फल खाने की चाह है" इस वाक्य मे 'चाह' एक कोशीय शब्द है, किन्तु "वह फल खाना चाहता है" मे 'चाहता' कोशीय शब्द नहीं है । यद्यपि वाक्यरचना मे दोनो समान स्थिति मे हैं, परन्तु प्रयम 'चाह' शब्द मुक्त पदिम है
और दूसरे वाक्य मे "चाहता" शब्द आवद्ध रूप है, इसलिये दोनो मे "चाह" समान होने पर भी अन्तर है। भाषाशास्त्री यह मानकर चलता है कि प्रत्येक सक्रिय अर्थवान इकोई पद के अर्थ की दृष्टि से स्थिर तथा निश्चित है। वह अपने अर्य से भिन्न किसी अन्य अर्थ से अन्वित हो सकता है, किन्तु अन्य अर्थ के समान नही होता । पदिम का अर्थ ही सक्रिय अर्थ इकाई है। भाषा का प्रत्येक मिश्र रूप पदिमो से निर्मित होता है। पदिमी की रचना ध्वन्यात्मक रूपो से होती है। भापा का सम्पूर्ण पदिम-भण्डार कोश कहलाता है।'
कोश और व्याकरण
शब्द-रचना की दृष्टि से कोश एव व्याकरणिक शब्द-रूपो मे समानता लक्षित होती है, किन्तु शब्द-व्यवस्था मे दोनो भिन्न हैं । स्पष्टत भाषिक सकेतो के अर्थवान लक्षण दो प्रकार के हैं कोशीय रूप, जिनमे ध्वनि-ग्राम और व्याकरणिक रूप एव व्याकरणिक लक्षण भी व्याप्त हैं। कोशीय रूप व्याकरणिक रूपो से दोनो ओर से सम्बद्ध होते है । एक ओर से, साराश रूप मे वह अर्थवान व्याकरणिक सरचना है और दूसरी ओर से भापिक रूप मे वह वास्तविक उच्चार है जो मदा व्याकरणिक रूप से समन्वित रहता है।' भाषा के सम्बन्ध मे प्राचीन वैयाकरणो की दृष्टि साधु तया असाधुता का निर्णय करने में व्याप्त रही है। व्याकरण मे शब्दो के शुद्धाशुद्ध रूप सम्बन्धी सिद्धान्तो का निरूपण मिलता है। प्रमुख रूप से उसमे सत्य-असत्य तथा साधु-असाधु का विवेचन पाया जाता है। व्याकरण सावु शब्द का विवेचन इसलिए करता है कि हम असाधु शब्द के प्रयोगो से बचें। कोश की आवश्यकता इसलिये मानी गई है कि उसमे अर्य का अनुशासन किया जाता है, इसलिये निश्चित अर्थ के वोध के लिए कोश का ५०न-पाठन आवश्यक होता है। कुछ टीकाकार व्याकरण को प्रामाणिक मानते हुए भी कोश को विशेष बलवान मानते है । उनके अनुसार जिस शब्द की सिद्धि किसी भी शब्दशास्त्र के वचन मे न होती हो, उसके सावुत्व का वोध केवल कोश से किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, अकारान्त "मरत" शब्द की सिद्धि व्याकरण के उणादि मूवी से नहीं होने पर भी इसे साधु माना जाता रहा है, क्योकि "विक्रमादित्य कोश" मे इस4] उद्धरण इस प्रकार है "मरुत स्पर्शन प्राण ममी माती मरुत् ।" जब तक यह जानकारी नही थी, तब तक "मरुत" शब्द को अमाध माना जाता था जो कि एक भ्रान्त धारणा थी।" यथार्थ मे शब्द के