Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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___३५२ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
'अभिधान चिन्तामणि' मे 'छुन्दरी' शब्द का स्पष्ट अभिधान किया गया है। जो निश्चित ही देश्य भापाओ से आगत है। 'अभिवानचिन्तामणि' कोश मे अनेक नवीन शब्दो का समावेश लक्षित होता है जो उसके पूर्व के सस्कृत कोशो मे उपलब्ध नही होते । उदाहरणार्थ चौल, चोटी, गोणी, हेरिक, कृमिला, समिता, पिण्डोलि, फेली, प्रोज्जासन, फरक, छुरी, ईपिय, सवर, इत्मी, तरपालिका, पाटी, झम्फान, खोल, पृपातक, ५८1का, टकपति, हैरिक, गन्दुक, मकुट, सिंघाण, सिंघाणक, गोनाम, गोराटी, गोरुत, गोहिर, घुटक, घुटिक, धूकारि, घृतेली, घोणम, धोल, चडिल, चलच चु, चिकिल, चिहुर, चीनक, चीनपिष्ट, पीरिल्लि, छगण, जडल, जलालीका, जलसपिणी, जागुड, जोनाला, डिंगर, ढोकन, तन्तुल, तीर्थकर, तीर्थवाक्, दन, भरूटक भोलि, मनस्ताल, मिथ्यात्व, मुसटी, मूनपुट, मेरक, राटि, पा, वड्, खण, वण्ड, वर्चस्क, वाहिक, वोल्लाह, वोहित्य, शूकल, श्वेतकोलक, सर्वभूपक, सापी, सार्व, मृपाटिका, स्थलशृगार, हारहूरा इत्यादि। सम्भव है कि इनमें से कोई एक-दो शब्द किसी प्राचीन शब्दाकोश मे हो, जो हमारे देखने मे न आए हो। किन्तु जानकारी के अनुसार ये अधिकतर नवीन शब्द हैं । इन दो के अध्ययन से यह भी निश्चय हो जाता है कि आचार्य हेमचन्द्र ने अमरकोश और उसकी परम्परा का अनुगमन किया है। अनेकार्यक कोशो मे प्राचीनतम उपलब्ध विश्वप्रकाश' को आधार मानकर 'अभिधानचिन्तामणि' की रचना नहीं हुई । 'अमरकोश' के अवश्य अधिकतर शब्दो का सकलन इस कोश मे किया गया है, किन्तु वे मम्कृत साहित्य मे या लोक-जीवन मे भी प्रचलित प्रतीत होते है । जैनागम-परम्परा के कई द अमरकोश मे मिलते हैं,यथा मिथ्यादृष्टि, मिथ्यामति, मुनि, मुनीन्द्र, जिन, अर्हत्, आश्रव आदि। विश्वप्रकाश' कोश मे कई ऐसे शब्द है जो अनेक सस्कृत कोशो मे लक्षित नहीं होते। उनमे से कुछ शब्द इस प्रकार है जैमुरि, मर्करा, एलावली, दुम्बरिका, चौड्ग, लम्पा, चावटीर, कम्बिका, शिराला, कदैवत, वरधू, जराटक, वशकम्बिका आदि । इस कोश मे कुछ कोशकार के गढे हुए शब्द भी मिलते हैं, जैसे कि –दध्या (दही के ऊपर की मलाई), दुग्धान (दूध के ऊपर की मलाई), वेणुमार (वशलोचन), नीरविकार (समुद्रफेन) आदि । ये सव शब्द 'अभिधान चिन्तामणि' मे भी सकलित नही हुए है। परन्तु कवि महेश्वर की भांति आचार्य हेमचन्द्र ने भी कुछ श०६ गते हैं। उदाहरण के लिए कुछ शब्द ये है---जलमारि (जलविलाव), जलवालिका (विद्युत्), झलक्का (चिनगारी), वायुवाह (धूम, धुआँ), अग्निवाह (धूम), तलाटी (वर), वर्पकरी (झीगुर) गृहमृग (कुत्ता), रानिजागर (कुत्ता), चामण्डलि (अजगर), भेवसुहृत् । मयूर), अम्बुप (चातक) इत्यादि । कही-कही मदिनी कोण' का भी प्रभाव लक्षित होता है।" किन्तु कही-कही दोनो के अर्थ मे भिन्नता भी लक्षित होती है। उदाहरण के लिए, 'अभिधानचिन्तामणि' मे 'जगल'