Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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सस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश की आनुपूर्वी मे कोश साहित्य ३५५ घृणि, घोषा, चन्द्रिल, चमरी, चोरवाल, चूडाल, चौल, छगली, छत, छत्ता, चास, चिन, चित्या, चुकी, चुलक, चुलुक, चुल्ल, छित्वर, जलाटनी, जवनी, जिह्वा, झसरी, झल्लरी, झषा, झिल्ली, झूणि, तण्डके, तण्डुला, तमोनु, तल्प, तानित, त्रपु, निगा, निपुटा, विष्, दक्षा, दक्षिणा, दण्डयाम, दन्ति, दस्म, दादा, दाय, दाव, दिष्टि, द्रू, धन्य, धनिक, धवल, धातु, धात, धाराधर, ध्रुवा, नलिन, नली, नवकलिका, नवाह, निर्नर, पक्षी, फलि, फली फल्गु, फेरव, पद्धशिख, महाधोपा, रक्तागा, रल्लक, लतामर्कटक, १२८, वरना, परद, शावर, शिलीन्ध्री, शीतशिव इत्यादि।
यद्यपि विश्वप्रकाश' और 'मेदिनीकोश' के आधार पर इस कोश का निर्माण हुआ प्रतीत होता है, किन्तु अनेक औषधियो के नाम तथा अन्य नाम इस कोश मे नही मिलते । मेदिनीकोश के निम्नलिखित शब्द इस कोश मे नही है
ऋद्धि, कुनटी, चिरटी, चेष्टित, जलतापिक ज्वलित, जह्न., जाड् गूली, जातु, जानपद, जालक, जालिक, जाहक, जीर्ण, गर, टुण्टक, डिलारी, डिम्बिका, तर्ष, तलुनी, तातगु, तातल, नायमाणा, त्यक्षर, स्वपन, दत्त, दन्तधावन, दानु, दान्त, दार, दारण, दीना, दीर्ण, दुधी, दुच्छक, दूषिका, द्वीपवान्, घट, धूसरी, ध्वजी, नर्मद, नर्मरा, निग्रन्थक, पाल, मसूरी, महाकच्छ, यक्षराट्, यूथिका, रज्जु, वारक, वारकी वारकीर इत्यादि ।
सस्कृत के इन प्रकाशित मूल ग्रन्थो का सम्पादन ठीक से नही हुआ है। प्रथम बार यह सम्भव भी नही था। अत कई स्थानो पर अनेक अशुद्ध पा० रह गये हैं। यह कार्य तभी हो सकता है जबकि विश्वप्रकाश, मेदिनी, अनेकार्थसग्रह आदि अनेकार्थक कोशो का तुलनात्मक अध्ययन कर प्रामाणिक पा० निर्धारित किए जाए । उदाहरण के लिए ___"पानपान दैत्यभेदे कारू शत्तयायुधे रुजि।" अनेकार्थ० २,५६१ 'अनेकार्थसग्रह' की यह पक्ति ज्यो की त्यो हमे विश्वप्रकाश' और 'मेदिनीकोश' मे मिलती है। किन्तु उनमे 'कार' के स्थान पर का' पाठ है । अत क्या 'कासू होना उचित है ? इसी प्रकार एक अन्य पाठ है ___स्याद् गोरिलस्तु सिद्धार्थ लोहचूर्णेऽथ चन्द्रिल । अनेकार्थ० ३,६८१ 'चन्द्रिल' के स्थान पर विश्वप्रकाश' मे 'चण्डिल' पाठ है। अनेकार्थसंग्रह की मुद्रित पुस्तक मे टिप्पणी मे 'चण्डिल' पा० भी है । अत यही उचित प्रतीत होता है कि 'चण्डिल' पा० ठीक है, चन्द्रिल नही । अतएव अनेकार्थसग्रह का 'चन्द्रिल' शब्द चण्डिल होना चाहिए । ऐसे अनेक पाठ है जो स्वतन्त्र अध्ययन के विषय हैं। 'विश्वप्रकाश' कोश के कई शब्द 'अनेकार्यमग्रह' मे लक्षित नहीं होते । कुछ शब्द इस प्रकार है
कदला, खण्डाली, विडाली, विशाल, विशाला, विमला, शीवल, विकेशी, वीतसी, भूयस् , ३रदक, एकसहा, कुटार, नाह, अश्व इत्यादि ।
सस्कृत के अनेकार्थक कोशो के तुलनात्मक अध्ययन से यह निश्चित प्रतीत