Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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आधुनिक जन कोश ग्रन्थो का मूल्याकन ३६३
गये । अपने इस अल्पकाल मे ही उन्होने अनेक ग्रथो का कुशल सपादन और लेखन किया।
से०जी के ग्रथो मे पाइयसहमहणव का एक विशिष्ट स्थान है । इसकी रचना उन्होने सभवत अभिधान राजेन्द्रकोश की कमियो को दूर करने के लिए की। जैसा हम पीछे लिख चुके है, सेठजी ने उपर्युक्त ग्रथ की मार्मिक समीक्षा की और उसकी कमियों को दूर कर नये प्राकृत कोश की रचना का सकल्प किया। उन्होने स्वयं लिखा है "इस तरह प्राकृत के विविधभेदो और विषयो के जैन तथा जनेतर साहित्य के ययेष्ट शब्दो से सकलित, आवश्यक अवतरणो से युक्त, शुद्ध एव प्रामाणिक कोश का नितान्त अभाव बना ही रहा है। इस अभाव की पूर्ति के लिए मैंने अपने उक्त विचार को कार्यरूप में परिणत करने का दृढ सकल्प किया और तदनुसार शीघ्र ही प्रयत्न भी शुरू कर दिया गया। जिसका फल प्रस्तुत कोश के रूप मे चौदह वर्षों के कठोर परिश्रम के पश्चात् आज पाठको के सामने उपस्थित
लेखक के इस कथन से यह स्पष्ट है कि कोश के तैयार करने मे उन्होने पर्याप्त समय और शक्ति लगायी। प्रकाशित सस्करणो को शुद्ध रूप मे अकित करने का एक दुष्कर कार्य था, जिसे उन्होने पूरा किया। इतना ही नही बल्कि उन्होने इस वृहत्काय कोश का सारा प्रकाशन-व्यय भी स्वय उठाया। कोशकार ने आधुनिक ढग से लगभग ५० पृष्ठ की विस्तृत प्रस्तावना भी लिखी, जिसमे प्राकृत भाषाओ का इतिहास तथा भारतीय भाषाओ के विकास मे उनके योगदान की विशेष चर्चा की। इस ग्रय के निर्माण मे उन्होने लगभग ३०० ग्रयो का उपयोग किया जो प्राय श्वेताम्बर सम्प्रदाय से सम्बद्ध है। लगभग प्रत्येक शब्द के साय किसी प्रथ का प्रमाण भी दिया गया है। इस दृष्टि से यह कोश अधिक उपयोगी हो सका है। एक शब्द के जितने सभावित अर्थ हो सकते है उनका भी कोशकार ने उल्लेख किया है। सदिग्ध पाठ को कोष्ठक मे प्रश्नचिह्न के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह व्यवस्था उनकी विद्वत्ता और सावधानता को सूचित करती है।
४ पुरातन-जन-वाक्य-सूचि
प्रस्तुत प्रथ के सम्पादक श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार प्राचीन जैन विद्या के प्रसिद्ध अनुसन्धाता रहे है । उन्होने वीर सेवा मदिर जैसे शोध-सस्थान और उसके अनेकान्त जैसे शोध-पत्र की स्थापना और उसका सम्यक संचालन कर जन विद्या के अनुसंधान क्षेत्र मे महत्त्वपूर्ण योग दिया है। श्री मुख्तार स्वयं भी एक वरिष्ठ अनुसंधाता रहे है। उन्होने अपनी अवस्था के लगभग ५० वर्ष इसी कार्य मे व्यतीत किये है। उनके ग्रथो मे स्वयभूस्तोत्र, स्तुति-विद्या, युक्तयनुशासन, समीचीन धर्मशास्त्र , अध्यात्म, रहस्य, जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, देवागम