Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
अभिधान राजेन्द्रकोग
आज तक प्राकृत के जो भी शब्दकोश लिखे गये, उन सब का भिन्न-भिन्न उद्देश्य रहा है । 'पाइयलच्छीनाममाला' प्राकृत के प्राथमिक विद्यार्थियों को ध्यान में रख कर लिखी गयी प्रतीत होती है । अतएव इसमे लगभग एक हजार शब्दों और उनके पर्यायवाची नामो का सकलन मिलता है । 'देशी नाममाला'
अधिकतर देशी शब्दों का संग्रह उपलब्ध होता है । इन दोनो ही कोशो मे न तो जैनागमो मे आगत शब्दो के दर्शन होते है और न जैन दर्शन के पारिभाषिक शब्दो को समझने के लिए उस समय तक हमारे पास कोई कोण जैसा माध्यम था । 'अभिधान राजेन्द्रकोण' ने निस्सन्देह इस अभाव की पूर्ति बहुत कुछ अशो मे की । अत इस विशाल कोप के प्रकाशन पर प्राच्यविद्या जगत् के सुप्रसिद्ध विद्वान् सिल्वा लेवी ने उच्छ्वसित भाव से ये उद्गार प्रकट किए थे
"अभिधान-राजेन्द्र" के पाँच वर्षों तक सतत स्वाध्याय के अनन्तर में यह कह सकता हूँ कि प्राच्यविद्या का कोई जिज्ञासु इस आश्चर्यजनक ग्रन्थ की अनदेखी नही कर सकता । अपने विशेष क्षेत्र मे इसने कोशविद्या के रत्न पीटर्सवर्ग कोश को भी अतिक्रांत कर दिया है । इस कोण मे प्रमाण और उद्धरणो से पुष्ट न केवल सारे शब्द ही आकलित हैं, अपितु शब्दो से परे जो विचार, विश्वास अनुश्रुतियाँ है, उनका सर्वेक्षण भी इस मे है ।" 'अभिधान-राजेन्द्र कोश' का कई दृष्टियो से विस्तृत अध्ययन किया जा सकता है । इस कोश में अनेक ऐसे प्रचलित शब्दों की विस्तार से व्याख्या की गई है, जो केवल जैनो के सांस्कृतिक जीवन से सम्बन्व रखते है । आज भी ये शब्द परम्परागत रूप से प्रचलित है । जैसेकि थुइ (स्तुति), समझ, सामाइय ( सामायिक), पडिक्कमण ( प्रतिक्रमण ), समायारी ( समाचारी ), पडिलेहणा (प्रतिलेखना ), थाणग, थानक ( स्थानक ), सधाड ( सिघाडा ), किरिया (क्रिया, भाव) सथार ( सथारा ), इत्यादि । "
एक-एक शब्द की व्याख्या इतने विस्तार से इस कोश मे की गई है कि आश्चर्यचकित हो जाना पडता है । उदाहरण के लिए, 'श्रमण' शब्द सातवे भाग में निबद्ध है । इसी खण्ड मे "सम्मत" (सम्यक्त्व, पृष्ठ ४८२-५०३), सरीर (शरीर, पृष्ठ ५३४-५५८), सिद्ध ( पृ० ८२१-८४५) सुय (श्रुत, पृष्ठ ६६६ - ६६८) व्याख्यायित है । इतना ही नही, कई शब्दो की व्याख्या मे सन्दर्भ पुर सर कथाओ का भी वर्णन है । साथ ही शब्दों की सुन्दर निरुक्तियों से कोश भरपूर है । " जैनागमो की भाषा का अध्ययन करने की दृष्टि से यह कोश नितान्त महत्त्वपूर्ण है । प्रत्येक शब्द के साथ ग्रन्थकार ने व्याकरणादि व्युत्पत्तियों तथा तद्विपयक सूत्रो का भी निर्देश किया है । ऐसा प्राकृत का शब्दकोश आज तक निर्मित नही हो सका । वास्तव मे बीसवी शताब्दी की यह महोपलब्धि है, जिससे जैन वाड्मय कृतार्थ हुआ है । गत