Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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३८८ सस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
तथा जैन लक्षणावली का उल्लेख कर सकते है। यही हम सक्षेप में इन कोशमन्यो का मूल्यांकन करने का प्रयत्न करें।
१ अभिधान राजेन्द्रकोण
इस कोश के निर्माता श्री विजय राजेन्द्र मूरि का जन्म स० १८८३, पोप शुक्ल सप्तमी, गुरुवार (सन् १८२६) को भरतपुर मे हुआ। आपका वाल्यावस्था का नाम रत्नराज या, पर स० १९०३ मे स्थानकवासी मप्रदाय मे दीक्षित होने पर रत्न विजय हो गया। बाद में उन्होंने व्याकरण दर्शन आदि का अव्ययन किया। सन् १९२३ मे वे मूर्ति पूजक सम्प्रदाय मे दीक्षित हुए और विजय राजेन्द्र सूरि के नाम से आचार्य पदवी प्राप्त की। उन्होने अनेक मदिर बनवाये और उनकी प्रतिकार्य करायी । वे अच्छे प्रवक्ता और शास्त्रार्यकर्ता थे । उपाध्याय वालचदजी से उनका मास्त्रार्य हुआ और वे विजयी हुए । आपको विद्वत्ता के प्रमाण स्वरूप आपके अनेक ग्रय है जिनमे अभियान राजेन्द्र कोश, उपदेश रत्न सार, सर्वसग्रह प्रकरण, प्राकृत व्याकरण विवृत्ति, शब्द कौमुदी, उपदेश रत्न सार, राजेन्द्र सूर्योदय आदि प्रमुख है। उनके ग्रयो से उनकी विद्वत्ता स्पष्ट रूप से झलकती है। श्री सूर्य का अत काल ३१ दिसम्बर सन् १६०६ मे राजगढ मे हुआ।
अभिवान राजेन्द्र कोग के लेखक विजय राजेन्द्र सूरि ने जैन साहित्य के अध्ययन-अध्यापन के दौरान यह अनुभव किया कि एक ऐसा जैन-आगम कोश होना चाहिए जो समूचे जैन दर्शन को अकारादि क्रम से मयोजित कर सके। लेखक ने अपने कोशमय की भूमिका मे लिखा है कि "इस कोश मे अकारादि क्रम से प्राकृत शब्द बाद मे उनका मस्कृत मे अनुवाद, फिर व्युत्पत्ति, लिंग निर्देश तथा जैन मागमो के अनुसार उनका अर्थ प्रस्तुत किया गया है। लेखक का दावा है कि जैन आगम का ऐसा कोई भी विषय नहीं रहा जो इस महाकोश मे न आया हो। केवल इस कोश के देखने से ही सम्पूर्ण जन आगमो का बोध हो सकता है। इसकी श्लोक सख्या साढे चार लाख है और अकारादि वर्णानुक्रम से सा० हजार प्राकृत शब्दो का संग्रह है।"
लेखक के ये शब्द स्पष्ट सकेत करते हैं कि उनका उद्देश्य इसे सही अर्थ मे महाकोश बनाने का या । इस महाकोश के मुख्य पृष्ठ पर लिखा है
श्री सर्वज्ञापित गणधर निवतिताऽद्य श्रीनोपलम्यमानाऽशेष-सून्नवृत्ति भाष्य निमुक्ति चूादि निहित सकल दार्शनिक सिद्धन्ततिहास शिल्प वेदान्त न्याय वैशेषिक भीमासादि प्रणितपदार्थयुक्तायुक्तत्व निर्णायक । વૃ ભૂમિ પઘાત પ્રતિવ્યાતિ પ્રાકૃત શબ્દ સ્પાવત્યાદ્રિ પરિશિષ્ટ हित ।
इससे पता चलता है कि कोशकार ने प्राकृत-जैन आगम, वृत्ति, भाष्य, नियुक्ति